देश की आजादी की लड़ाई के समय जब 4 जनवरी 1932 को महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया। फ्रंटियर गांधी यानी अब्दुल गफ्फार खान को भी निर्वासित कर गिरफ्तार कर लिया गया। जवाहरलाल नेहरू को इलाहाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने शहर न छोड़ने का आदेश दिया। तब स्वाधी
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वे भी दुख एवं पीड़ा में थे कि ब्रिटिश सरकार द्वारा एवं विशेष रूप से गवर्नर जनरल इन काउंसिल द्वारा राष्ट्रीय नेताओं से मंत्रणा बिना और उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए बिना दमनकारी अध्यादेश जारी कर दिए गए। डॉ. गौर ने पूरे देश में लेखन पर सेंसरशिप, प्रतिबंध और निषेध की भी आलोचना की थी। यह खुलासा डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय की भारत रत्न कमेटी के सदस्य डॉ. संदीप रावत द्वारा की गई रिसर्च में हुआ है। संदीप तिवारी
गिरफ्तारी न्याय और निष्पक्षता के सभी सिद्धांतों के विरुद्ध
डॉ. गौर 1932 में उपनिवेशीय केंद्रीय विधानसभा के पटल पर एक प्रस्ताव लेकर आए। उन्होंने कहा- अध्यक्ष महोदय मैं अपना प्रस्ताव करता हूं। यह सभा मानती है कि महात्मा गांधी को वायसराय से मुलाकात का अवसर दिए बिना उनके विरूद्ध की गई कार्यवाही अनुचित थी। खान अब्दुल गफ्फार खान का निर्वासन और सेनगुप्ता की भारतीय धरती पर उतरने से पहले ही गिरफ्तारी न्याय और निष्पक्षता के सभी सिद्धांतों के विरूद्ध थी।
शोर-शराबे के बीच डाॅ. गौर ने कहा कि दो वर्ष पहले भी सविनय अवज्ञा आंदोलन हुए थे जिनके संबंध में उपनिवेशीय सरकार ने दमनकारी नीतियों के चलते अध्यादेश जारी किए थे एवं देशभक्तों के ऊपर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे। जब इंग्लैंड में गोलमेज सम्मेलन हो रहा था तो अंग्रेजों ने आने वाले तूफान को भांप लिया था और तुरंत अध्यादेश तैयार कर लिए थे।
सदन में गिनाए दमनकारी कानून, शर्म-शर्म के नारे गूंजे
डॉ. गौर ने सदन में कहा भारत में कोई भी ब्रिटिश सरकार के अधिकारी दमनकारी नीति के चलते बिना किसी सबूत के 15 दिन से 2 माह की अवधि तक भारत के किसी भी आम नागरिक को हिरासत में ले सकता है। ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को भारतीय घरों के अंदर तक, यहां तक कि पूजा घर तक प्रवेश का अधिकार, तलाशी का अधिकार, भारतीयों की चल/अचल संपत्तियों को जब्त करने के अधिकार प्राप्त थे।
जब कोई 16 वर्ष का युवा देश प्रेम के किसी आंदोलन में शामिल होता है अंग्रेज अधिकारियों द्वारा दोषी पाए जाने और जुर्माना अदा न करने पर न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि उसके अभिभावक माता/ पिता भी उस अपराध के दोषी हैं और उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाए मानो वे ही दोषी हैं। अगर वे जुर्माना अदा नहीं कर पाते तो उनको कारावास की सजा भुगतनी होगी। इसके बाद सदन में शर्म-शर्म के नारे गूंज उठे।
सदन क्रूर कानूनों की समीक्षा करे : डॉ. गौर ने कहा- ये पंक्तियां पढ़ते ही मेरी सांस फूल गईं! क्या इसमें कुछ है? सभ्य दुनिया का कोई भी संविधान जिसकी तुलना की जा सके इस कानून के प्रावधान कितने क्रूर हैं? अफसोस मैं यहां देखने के लिए बैठा हूं। इन अध्यादेशों पर टिप्पणी करना व्यर्थ है। यह सदन भारत सरकार को बाध्य कर सकता है कि वह उन्हें यहां सदन के पटल पर रखें, जिससे सदन उनकी समीक्षा कर सके।
स्वशासन देने का उद्देश्य हो पूरा : डॉ. गौर ने कहा अब सभी को मिलकर भारत को स्वशासन प्रदान करने के अपने उद्देश्य को पूरा करना चाहिए। हमारा कर्तव्य अपनी मातृभूमि की अविचल, प्रेमपूर्वक और निडरता से सेवा करना है। मैं आशा करता हूं इस सदन के सभी संकीर्ण और वर्गीय मतभेदों को भुलाकर राष्ट्रीय देशभक्ति की उस ऊंचाई तक पहुंचेंगे और देखेंगे कि बुनियादी अधिकारों की आवश्यकता है।
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