वाशिंगटन54 मिनट पहले
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डोनाल्ड अगले साल 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं। उन्होंने पिछले महीने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की है।
नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को सोशल मीडिया अकाउंट से पोस्ट करते हुए BRICS देशों पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है। ट्रम्प ने अमेरिकी डॉलर के अलावा किसी और करेंसी में BRICS देशों के ट्रेड करने पर 100% टैरिफ लगाने की बात कही।
ट्रम्प ने कहा कि हमें BRICS देशों से गारंटी चाहिए कि वो ट्रेड के लिए अमेरिकी डॉलर की जगह, कोई नई करेंसी नहीं बनाएंगे और न ही किसी दूसरे देश की करेंसी में ट्रेड करेंगे। अगर BRICS देश ऐसा करते हैं तो उन्हें अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 100% टैरिफ का सामना करना पड़ेगा।
साथ ही अमेरिकी बाजार में सामान बेचने के बारे में भूल जाना चाहिए। ट्रम्प ने कहा- ट्रेड के लिए डॉलर की जगह दूसरी करेंसी के इस्तेमाल की कोई जगह नहीं हैं। अगर कोई देश ऐसा करता है तो उसे अमेरिका को भूल जाना चाहिए।
BRICS में भारत, रूस और चीन समेत 9 देश शामिल हैं। यह उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है।
इस साल अक्टूबर में रूस के कजान में BRICS देशों की समिट हुई थी। इस दौरान BRICS देशों की अपनी करेंसी को लेकर भी चर्चा की खबरें सामने आई थीं।
करेंसी बनाने पर BRICS देशों में सहमति नहीं
BRICS में शामिल सदस्य देशों के बीच करेंसी बनाने को लेकर सहमति नहीं हो पाई है। इसे लेकर अब तक कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। इस साल रूस में हुई BRICS देशों की समिट से पहले इसकी करेंसी को लेकर चर्चा तेज थी।
हालांकि समिट से पहले ही रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने ये साफ कर दिया था कि BRICS संगठन अपनी करेंसी बनाने पर विचार नहीं कर रहा है। हालांकि समिट में BRICS देशों के अपने पेमेंट सिस्टम को लेकर चर्चा हुई थी।
इस पेमेंट सिस्टम को ग्लोबल SWIFT पेमेंट सिस्टम की तर्ज पर तैयार करने को लेकर चर्चा हुई थी। भारत ने BRICS देशों को पेमेंट सिस्टम के लिए अपना UPI देने की पेशकश की थी।
BRICS की सालाना बैठक 22 से 24 अक्टूबर को रूस के कजान शहर में हुई थी।
डॉलर की दम पर अमेरिका अरबों कमाता है
1973 में 22 देशों के 518 बैंक के साथ SWIFT नेटवर्क शुरू हुआ था। फिलहाल इसमें 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे।
सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7.8 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।
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दूसरे विश्वयुद्ध तक ज्यादातर देशों के पास जितना सोने का भंडार होता था, वो उतनी ही वैल्यू की करेंसी जारी करते थे। 1944 में दुनिया के 44 देशों के डेलिगेट्स मिले और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी करेंसी का एक्सचेंज रेट तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था और वो दुनिया की सबसे बड़ी और स्थिर अर्थव्यवस्था था। पूरी खबर यहां पढ़ें…
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