सिर्फ एक किलो कचरे को जलाने के लिए 3740 रुपए प्रति किलो का खर्च आए तो आप हैरान हो सकते हैं, लेकिन ये कचरा साधारण नहीं है बल्कि उस यूनियन कार्बाइड का है जिसने भोपाल गैस त्रासदी के रूप में हजारों जिंदगियाें को पीढ़ियों तक दर्द दिया। हादसे के 40 साल बाद
.
इससे पहले जर्मनी में भी इस कचरे को ले जाकर जलाने की बात हो चुकी है, लेकिन वहां भारी विरोध और प्रदर्शन के बाद इसे नहीं ले जाया जा सका।
यूनियन कार्बाइड का कचरा फैक्ट्री के पास तालाब तक फैला हुआ है।
यूनियन कार्बाइड के कचरे में ऐसा क्या है जो इतना हानिकारक है, क्यों इसे पीथमपुर इंसीनरेटर ही ले जाया जा रहा, मामले में अब तेजी क्यों आई, पीथमपुर में इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया है
जानने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट…
3 दिसंबर को भोपाल गैस त्रासदी की 40वीं बरसी पर यूनियन कार्बाइड के कचरे को निपटाने से जुडे़ केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मप्र सरकार को चार सप्ताह में यूनियन कार्बाइड के कचरे को फैक्ट्री परिसर से हटाने की डेडलाइन दी। ये डेडलाइन अगली सुनवाई यानी 6 जनवरी के पहले की है।
कोर्ट ने तय समय में काम को पूरा करने के लिए जिस भी तरह की अनुमति की आवश्यकता है ताे उसे 1 सप्ताह यानी 11 दिसम्बर से पहले पूरा करने के निर्देश दिए। अफसरों ने 10 दिसंबर तक सारी औपचारिक बैठकें भी कर ली हैं।
यूनियन कार्बाइड कारखाना परिसर और उसके बाहर फैले जहरीले कचरे से प्रदूषित हुए 42 वार्डो के भूजल और मिट्टी की सफाई के लिए 2004 में हाईकोर्ट में भोपाल निवासी आलोक सिंह ने याचिका दायर की थी।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी से आई मामले में तेजी
3 दिसंबर को केस की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सख्त लहजे में कहा कि अगर विभाग इस आदेश का पालन करने में विफल रहता है, तो विभाग के प्रधान सचिव पर न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
मप्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस.के. कैत और जज विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा कि यह वास्तव में खेदजनक स्थिति है, क्योंकि संयंत्र स्थल से जहरीले कचरे को हटाना आसपास की मिट्टी और भूजल में फैले प्रदूषकों को हटाना भोपाल शहर की आम जनता की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
10 टन का परीक्षण रामकी एनवायरो में हो चुका
2005 में रामकी एनवायरो इंडस्ट्रीज को प्लांट में फैले कचरे को इकट्ठा करने का टेंडर मिला था। तब फैक्ट्री में 4 तरह के 347 टन रासायनिक कचरे को प्लास्टिक बैग और लोहे के ड्रम्स में पैक कर आरसीसी की फर्श वाले गोदामों में भरा गया था। इस कचरे में से 10 टन का परीक्षण रामकी एनवायरो में किया गया था।
9 साल पहले इस प्रक्रिया से हुई थी टेस्टिंग
- 2015 में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भोपाल गैस त्रासदी एवं पुनर्वास विभाग, स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की उपस्थिति में कचरे के सैंपल इकट्ठे किए ।
- 10 टन कचरे की सैंपलिंग, पैकेजिंग, लेबलिंग, ट्रांसपोर्टेशन, रिपेकैजिंग और ट्रायल में ही 27 दिन का समय लग गया था।
- 5 तरह के कचरे में से प्रत्येक से एक–एक सैंपल लेकर सरकारी और प्राइवेट लैब्स में जांच के लिए भेजा गया था। जांच के बाद कचरे में कार्बन अपशिष्ट की मात्रा मिली।
- ड्रम्स को पूरी तरह से सील पैक करने के बाद 4 ट्रकों में लोड किया और पुलिस सुरक्षा में पीथमपुर ले गए।
- इनसिनरेटर की कचरा जलाने की क्षमता 250 किग्रा प्रति घंटा है, ट्रायल रन में 90 किग्रा प्रति घंटा ही डाला गया।
- 10 टन कचरे का जलाने के लिए लगभग 5 दिन का समय लगा।
तैयार प्रोडक्ट से भी महंगा पड़ रहा कचरा जलाना
यूनियन कार्बाइड में तीन कीटनाशकों का निर्माण होता था: कार्बेरिल (व्यापारिक नाम सेविन), एल्डीकार्ब (व्यापारिक नाम टेमिक) और कार्बेरिल और गामा-हेक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन (जी-एचसीएच) का एक मिश्रण, जिसे सेविडोल के नाम से बेचा जाता है।
40 साल बाद भी इन तीनों के एक किलो पैकेट की किमत 500 रूपए से भी अधिक नहीं है। यानी तैयार प्रोडक्ट से 7 से 8 गुना ज्यादा कीमत इनके रॉ मैटेरियल को जलाने में आ रही है।
पीथमपुर में कचरा जलाने में सबसे बड़ी समस्याएं–
- पीथमपुर में पिछले 20 सालों से लोग इस कचरे को जलाने का विरोध कर रहे हैं। पीथमपुर में 40 टन रासायनिक कचरा और 10 टन कचरे का 48 टन अवशेष लैंडफिल किया जा चुका है। लोगों का कहना है कि इसके बाद वहां पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हाे गई है।
- पीथमपुर से 40 किमी दूर मप्र की आर्थिक राजधानी इंदौर है। कचरे का प्रभाव इंदौर पर पड़ने का डर है, जिससे भविष्य में होने वाले निवेश पर और लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
- पीथमपुर में किए गए 7 में से 6 परीक्षण फेल हुए हैं।
- तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री ने साइट के करीब बसे तारपुर गांव को विस्थापित करने की बात कही थी लेकिन अब बिना विस्थापित किए कचरा दहन की बात सामने आ रही है।
- पीथमपुर प्लांट के करीबी गांव तारपुरा, चिखनगांव के लोगों का कहना है कि गांव में बोरवोल से रंगीन पानी निकलता है, जिसका टीडीएस 2.5 हजार के करीब है।
अब एक्टिविस्ट की राय पढ़िए…
कचरे से ज्यादा खतरनाक तालाब की 1 लाख टन मिट्टी
गैस कांड के प्रभावितों के पुनर्वास के लिए काम करने वाले एक्टिविस्ट एनडी जयप्रकाश का कहना है कि सरकार एक टन कचरे के लिए 37 लाख रूपए खर्च कर रही है। ये पैसा देश के लोगों के टैक्स का पैसा है। 337 टन कचरे को हटाने से भोपाल के लोगों को कोई फायदा नहीं है। यह कचरा तो सुरक्षित रूप से गोदाम में प्लास्टिक और मेटल ड्रम्स में बंद पड़ा है।
अब तक जितने टेस्ट हुए लगभग सभी फेल हुए
भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन की संचालक रचना ढींगरा कहती हैं कि भारत में कोई भी ऐसा इनसिनेरेटर नहीं है जो भोपाल के कचरे को हैंडल कर पाए। इस कचरे को स्टिल के कंटेनर में पैक रख देना चाहिए और डाऊ केमिकल को इसे अपने देश ले जाने के लिए कहना चाहिए। जिस कचरे से खतरा ही नहीं है उसके लिए 126 करोड़ खर्च करना क्राइम है। और जिस कचरे से लोगों में कैंसर जैसी गंभीर बिमारियां हो रही है उसके लिए कोई काम नहीं हो रहा।
जर्मनी और तीन राज्य हामी भरने के बाद पीछे हटे
यूनियन कार्बाइड के कचरे के निस्तारण के लिए पीथमपुर से पहले भारत के तीन राज्यों और जर्मनी की संस्थाओं ने हामी भर दी थी, लेकिन जैसे ही लोगों को पता चला कि भोपाल गैस त्रासदी का कचरा हमारे राज्य, शहर और देश में निस्तारित होने वाला है तो लोगों ने इसे रोकने के लिए वहां जन आंदोलन शुरू कर दिए। बड़े स्तर पर सरकारों का विरोध शुरू हो गया।
जानिए 3 राज्यों ने क्या कहकर मना किया
2008 में गुजरात की मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी
2008 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे। 2007 में मप्र हाईकोर्ट ने 350 टन यूनियन कार्बाइड के कचरे को गुजरात के अंकलेश्वर में जलाने का आदेश दिया। गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी भी मिल गई, लेकिन जनता ने कचरा जलाने का विरोध कर दिया। दबाव में आकर गुजरात ने एनओसी वापस ले ली।
आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र ने मना किया, सीमेंट भट्टियाें में जलाने की बात कही
अक्टूबर 2009 में हैदराबाद के डुंगीगल और मुंबई के तलोजा का सर्वे भी किया गया, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। इसके बाद एक्सपर्ट्स ने सीमेंट भट्टियों में कचरे को जलाने के विकल्प की भी खोज की। राष्ट्रीय सीमेंट और निर्माण सामग्री परिषद ने भट्टी में 2 प्रतिशत की दर से कचरे के उपयोग की सिफारिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया और 28 जनवरी 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने सफल ट्रायल के बाद मध्य प्रदेश के पीथमपुर में 346 मीट्रिक टन कचरे को जलाने का आदेश दिया।
रक्षा मंत्रालय भी कचरे को नहीं जला पाया–
जून 2011 में भारत सरकार ने 346 मीट्रिक टन कचरे को नागपुर में डीआरडीओ भेजने की बात की। सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद महाराष्ट्र और खासकर नागपुर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। महाराष्ट्र सरकार ने यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे राज्य के निवासियों और पर्यावरण को गंभीर नुकसान हो सकता है।
जर्मनी ने सिर्फ 54 करोड़ में डील की, वहां भी प्रदर्शन शुरू
24 फरवरी 2012 में जर्मन कंपनी जीआईजेड ने मध्य प्रदेश सरकार को कचरे का परिवहन और निपटान जर्मनी के हैम्बर्ग में करने का ऑफर दिया। इसके लिए 54 करोड़ रूपए की पेशकश की। लेकिन 17 सितंबर 2012 में जर्मनी में भी स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया, इसके बाद जर्मनी ने डील कैंसल कर दी।
अब पीथमपुर में विरोध तेज, लोग बोले- भोपाल नहीं बनने देंगे पीथमपुर को
पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का कचरा लाया जाएगा। ये खबर सामने आते ही पीथमपुर के कई संगठनों ने कचरा जलाने के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। पीथमपुर के युवा संदीप रघूवंशी अकेले ही इसके विरोध में 15 दिनों से अपना काम बंद कर प्रदर्शन कर रहे हैं। बाजार, गांवों में जाकर हाथ में पोस्टर लेकर वहां के लोगों को विरोध में शामिल होने के लिए मना रहे हैं।
इंसीनरेटर कैसे काम करता है–
इंसीनरेटर में अत्यधिक तापमान पर कचरे को जलाया जाता है। इंसीनरेटर उच्च तापमान सहन करने वाली रिफरेक्ट्री ब्रिक्स और स्टेनलेस स्टील से बनाया जाता है। इसमें तीन चैंबर होते हैं।
पहला प्राइमरी चैंबर होता है जिसमें कचरे को सबसे पहले सबसे ज्यादा तापमान पर जलाया जाता है। इसके बाद सैकंडरी चैंबर में कचरे के बचे कुछ कणाें काे पूरी तरह से जलाया जाता है। इसमें भी अत्यधिक तापमान के साथ हाई ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती है। इसमें हीट रिकवरी बॉयलर होता है जो तापमान को अवशोषित करता है।
एयर पॉल्यूशन कंट्रोल डिवाइस लगी होती है, जाे खतरनाक उत्सर्जन को कम करने में काम आता है।
अभी ज्यादा नहीं बोल सकता- दुबे
भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के उप सचिव से हमने इस मामले पर बात की तो उन्होंने कहा कि ये मामला कोर्ट और सरकार के निर्णय के बीच का है। इस विषय पर अभी ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता। बेहतर होगा विधानसभा सत्र के बाद इस विषय पर बात की जाए।
#र #कल #म #पथमपर #म #जलग #यक #क #कचर #जनवर #स #पहल #पहचग #इसक #खलफ #जरमन #म #भ #ह #चक #परदरशन #Madhya #Pradesh #News
#र #कल #म #पथमपर #म #जलग #यक #क #कचर #जनवर #स #पहल #पहचग #इसक #खलफ #जरमन #म #भ #ह #चक #परदरशन #Madhya #Pradesh #News
Source link