तानसेन समारोह के समापन पर अपनी प्रस्तुति देती महिला संगीत कलाकार
ग्वालियर में 19 दिसम्बर को गान महर्षित तानसेन की जन्मस्थली बेहट में भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में प्रतिष्ठित तानसेन संगीत समारोह के 100 वें महोत्सव के समापन पर नौंवी संगीत सभा में बहे सुर मखमली अहसास करा गए। संगीत कलाकारों ने ऐसा झूमके गाया-ब
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इस वर्ष के तानसेन समारोह के तहत यह सभा बेहट में गुरुवार को भगवान भोले के मंदिर और झिलमिल नदी के समीप स्थित ध्रुपद केंद्र के मुक्ताकाश मंच पर सजी। यह वही जगह थी, जहां संगीत सम्राट तानसेन का बचपन संगीत साधना और बकरियां चराते हुए बीता था। लोक धारणा है कि तानसेन की तान से ही निर्जन में बना भगवान शिव का मंदिर तिरछा हो गया था।
यह भी किंवदंती है कि 10 वर्षीय बेजुबान बालक तन्ना उर्फ तनसुख भगवान भोले का वरदान पाकर संगीत सम्राट तानसेन बन गया। सौंदर्य से भरपूर सुबह में प्रकृति के बीच यह संगीत सभा सुनकारों के लिए अनूठा अनुभव था। पहाड़ों से घिरे इस अप्रतीम स्थान पर प्रदेश एवं देश के संगीतज्ञों ने अपनी स्वरांजली तानसेन को अर्पित की।
जोश और उत्साह से भरे अल्टीमेट वॉरियर्स बाइकर ग्रुप के जांबाज 20 बाइकर्स ने ग्वालियर से बेहट तक तानसेन समारोह एवं संगीत का परचम लहराया। बुलंद आवाज वाली बाइक्स ने इस अनुपम प्रयोग में चार चांद लगा दिए।
बेहट में संगीत समारोह का बैठकर आनंद लेते दर्शक
ध्रुपद गायन से हुई सभा की शुरुवात
दीप प्रज्ज्वलन पश्चात बेहट की संगीत सभा का शुभारंभ हुआ। सर्वप्रथम मंच पर ध्रुपद केंद्र, बेहट के शिष्य, केन्द्र के सहायक गुरु अनुज प्रताप सिंह के मार्गदर्शन में उन्होंने राग भैरव में अपना ध्रुपद प्रस्तुत किया। इसमें निबद्ध बंदिश शिव आदि मद अंत प्रस्तुत की।
इसके बाद राग कोमल ऋषभ आसावरी में ताल जलद सूल में निबद्ध बंदिश आन सुनाई, बांसुरी सुनाकर वातावरण में दिव्यता घोल दी। वही जयनारायण शर्मा ने पखावज पर संगत दी।
मोघे दम्पत्ति के ख्याल गायन से गूँजी तानसेन की देहरी
अगली प्रस्तुति में ग्वालियर के अनूप मोघे, वैशाली मोघे का ख्याल गायन हुआ। उन्होंने राग नट भैरव से गायन का शुभारंभ किया। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे ‘गुरु बिन ज्ञान कहां से पाऊं’ जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे ‘यह सिंगार नटराज राज को’। दोनों ही बंदिशों को श्री अनूप एवं सुश्री वैशाली मोघे ने पूरे कौशल से गाया। उन्होंने गायन का समापन गूजरी तोड़ी में त्रिताल बंदिश ‘ माने न मोरा’ से किया। उनके साथ तबले पर मनीष करवड़े व हारमोनियम पर अक्षत मिश्रा ने साथ दिया। तानपुर पर प्रणव प प्रांजलि मोघे ने स्वराधार दिया।
राग विलासखानी तोड़ी में किया ध्रुपद गायन
अगले क्रम में दिल्ली से पधारी डॉ.अदिति शर्मा का ध्रुपद गायन भी इस सभा में हुआ। उन्होंने राग विलासखानी तोड़ी से अपने गायन का प्रारंभ किया। आलाप, जोड़ से शुरू करके उन्होंने चौताल की बंदिश ‘आनंद भयो नगर’ की प्रस्तुति दी। इसके बाद सूलताल में स्व रचित ‘मोरी पत राखो राम’ की भी प्रस्तुति दी। सुश्री ईला शर्मा व श्री अरुण दत्त शर्मा ने साथ दिया। जबकि पखावज पर श्री मनमोहन नायक ने संगत की।
सितार वादन से झिलमिलाई झिलमिल नदी
सभा का समापन ग्वालियर के युवा कलाकार दीपांशु शर्मा के सितार वादन से हुआ। दीपांशु ने राग किरवानी में तीन गतें पेश की। विलंबित गत, मध्यलय एवं द्रुत गत क्रमश: तीन ताल, एक ताल व तीन ताल में निबद्ध थी। दीपांशु के साथ तबले पर मनोज पाटीदार ने संगत की।
सभा में इनकी रही मौजूदगी
बेहट में सजी संगीत सभा में बीज निगम के पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र सिंह यादव सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण, संचालक संस्कृति विभाग एन पी नामदेव, एसडीएम सूर्यकांत त्रिपाठी, एसडीओपी संतोष पटेल सहित अन्य अधिकारी, समीपवर्ती ग्राम और ग्वालियर व अन्य शहरों से बड़ी संख्या में रसिक इस सभा का आनंद लेने पहुंचे थे।
सभा का संचालन अशोक आनंद ने किया। राज्य शासन के संस्कृति विभाग के लिए जिला प्रशासन, नगर निगम ग्वालियर व पर्यटन विभाग के सहयोग से उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा यह आयोजन किया गया।
समारोह के शताब्दी महोत्सव की आखिरी सभा
वही ग्वालियर में गान मनीषी तानसेन की याद में संगीत की नगरी ग्वालियर में बीते पांच दिनों से चल रहे स्वर—ताल के सुरीले हार में आखिरी फूल के रूप में अनूठी संगीत सभा सजी। इस सभा मेनादब्रह्म की महिला साधिकाओं ने कला पोषक महाराजा मानसिंह की प्रेयसी मृगनयनी के महल “गूजरी महल” को गायन-वादन से गुंजायमान कर दिया।
गुरुवार को सायंकालीन सभा महिला कलाकारों पर केंद्रित रही। परंपरानुसार ईश्वर की आराधना के गान ध्रुपद का गायन हुआ। ध्रुपद केन्द्र, ग्वालियर के गुरु एवं शिष्यों ने यह प्रस्तुति दी। उन्होंने राग पूरिया धनाश्री में आलाप, जोड़, झाला से राग को विस्तार देते हुए सूलताल की बंदिश ऐसी छबि तोरी समझत नहीं…. से परिसर में दिव्यता घोल दी। पखावज पर पंडित जगतनारायण शर्मा, तानपुरा पर सुश्री मुक्ता तोमर एवं श्री अजय गुरु ने संगत दी। यह प्रस्तुति ध्रुपद गुरु श्री अभिजीत सुखदाणे एवं सहायक गुरु श्री यखलेश बघेल के मार्गदर्शन में हुई।
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