आइसर भोपाल के विज्ञानियों ने सीताफल का जीनोम अनुक्रमण तैयार किया है, जिससे इसके औषधीय गुणों की पहचान हुई है। इसमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट, एंटी फंगल और एंटी वायरल गुण कैंसर, मधुमेह जैसी बड़ी बीमारियों के उपचार में कारगर हो सकते हैं।
By Prashant Pandey
Publish Date: Sat, 11 Jan 2025 10:57:33 AM (IST)
Updated Date: Sat, 11 Jan 2025 11:35:52 AM (IST)
HighLights
- आइसर के विज्ञनियों ने सीताफल का जीनोम सिक्वेसिंग कर बताई इसकी अहमियत।
- सीताफल के किसी भी मौसम में उत्पादन और नई किस्मों के उत्पादन की खुली राह।
- मध्य प्रदेश में अभी सीताफल का सालाना उत्पादन ही 12 लाख टन बताया गया है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल(Sitaphal Fruit)। भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आइसर) भोपाल के बायोलाजिकल साइंसेज विभाग के प्रोफेसर विनीत के. शर्मा की टीम ने सीताफल (शरीफा) का जीनोम अनुक्रमण तैयार कर इसके कई नए औषधीय गुणों की पहचान की है।
पता चला है कि इसमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट, एंटी फंगल और एंटी वायरल गुण कैंसर, मधुमेह जैसी कई बड़ी बीमारियों के उपचार में कारगर हो सकती है। इनके इस अध्ययन ने सीताफल को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने की राह भी खोली है।
अभी यह फल पकने के दो-तीन दिनों में ही खराब हो जाता है। इस वजह से इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। विज्ञानियों का कहना है कि जीन के क्रम को बदलकर इसके गुणों की पहचान की गई है। अब इस फल को लंबे समय तक रखा भी जा सकेगा। इससे इसके परिवहन और भंडारण में भी आसानी होगी।
दो साल में इस पर अध्ययन पूरा किया
ऐसे में यह अध्ययन न केवल विज्ञानियों के अनुसंधान को आगे बढ़ाएगा, बल्कि किसानों और लोगों के लिए भी लाभकारी साबित होगा। विनीत के. शर्मा के साथ शोधार्थी मनोहर विशिष्ट, अभिषेक चक्रवर्ती, श्रुति महाजन ने दो साल में इस अध्ययन को पूरा किया है।
इन तकनीकों का किया उपयोग
इस अध्ययन के दौरान विज्ञानियों ने सीताफल के जीनोम की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए ऑक्सफोर्ड नैनोपोर और इल्लुमिना तकनीकों का उपयोग किया। इसका जीनोम 93.2 मेगाबेस (एमबी) के 950 मान के साथ सात प्यूडोक्रोमोसोम्स में व्यवस्थित किया गया है।
गुणवत्ता में भी सुधार
इस अध्ययन के माध्यम से सीताफल के औषधीय गुणों विशेष रूप से इसके बायोएक्टिव यौगिकों के बारे में जानकारी मिली है। इसमें फोटोसिंथेसिस, आक्सीडेटिव फास्फोराइलेशन और प्लांट थर्मोजेनेसिस से संबंधित जीन परिवारों में महत्वपूर्ण विस्तार देखा गया।
फल की मिठास, चीनी परिवहन (जैसे स्वीट जीन) और द्वितीयक मेटाबोलाइट उत्पादन से जुड़े जीनों की पहचान प्रजनन कार्यक्रमों में मदद कर सकती है, ताकि फल की गुणवत्ता, उपज और तनाव प्रतिरोध बढ़ सके, जो कृषि में इसकी खेती और उपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बता दें कि मप्र में सीताफल का उत्पादन सालाना 12 लाख टन है।
यह है जीनोम अनुक्रम
जीनोम उपक्रम की मदद से हम किसी पौधों में छिपे गुणों का पता लगाते हैं। यह एक प्रकार का कोड होता है, जो चार लेटर का होता है। यह डीएनए के अंदर एडेनीन (ए), गुआनीन (जी), साइटोसीन(सी) और थाइमीन(टी) के रूप में रहता है।
ये चारों लेटर क्रम बदल-बदलकर डीएनए में सजे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर एजीसीटी, एसीजीटी, एटीजीसी…। यह अनुक्रम पौधों में हजारों से लेकर लाखों, करोड़ों तक हो सकते हैं। ये जीनोम अनुक्रम जीन्स बनाते हैं।
सीताफल की सिक्वेसिंग नहीं की गई है
सीताफल के पौधे का जीनोम सिक्वेसिंग कर इसके औषधीय गुणों के बारे में पता लगाया गया है। यह एक ऐसा फल है, जो प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन इसके गुण काफी अधिक हैं। अभी तक इसकी जीनोम सिक्वेसिंग कहीं भी नहीं किया गया था। – प्रो. विनीत के शर्मा, विज्ञानी, बायोलाजिकल साइंसेज विभाग, आइसर, भोपाल
सीताफल में पाए जाते हैं कई विटामिन
सीताफल में विटामिन ए और सी पाया जाता है, इस कारण इसके बहुत फायदे हैं। साथ ही इसकी पत्तियों में फाइको केमिकल पाया जाता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है। अब जीनोम अनुक्रमण करने के बाद इसके किसी भी मौसम में उत्पादन की राह आसान होगी। साथ ही इसकी नई किस्म भी विकसित की जा सकेगी। – डॉ. भारती कुमार, प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग, शासकीय मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय, भोपाल
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