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बेटियां सबसे आगे इसलिए कहती हूं ‘वोट फॉर घाघरा’: ‘चोली के पीछे…’ फेम सिंगर इला अरुण बोलीं- लड़कियां एक्टर बनने मुंबई जाती है, किरदार निभाने के लिए जीना होगा – Udaipur News

बॉलीवुड के फेमस गाने ‘चोली के पीछे…’, ‘मोरनी बागा में…’, ‘गुपचुप गुपचुप…’ को अपनी आवाज देने वाली सिंगर इला अरुण उदयुपर आई। यहां उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘परदे के पीछे’ का विमोचन किया। इस मौके पर भास्कर से बात करते हुए बोलीं- ‘जिंदगी गुजर रही है कि

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जयपुर से कई लड़कियां मुंबई एक्टर बनने आती हैं। मैं कहना चाहूंगी कि किसी और का किरदार निभाना है तो उसके लिए उसमें जीना होगा। उन्होंने कहा- बेटियां सबसे आगे है इसलिए मैं कहती हूं ‘वोट फॉर घाघरा।’ भास्कर से बात करते हुए उन्होंने कई सवालों का जवाब दिया। पढिए…

उदयपुर में परदे के पीछे पुस्तक का विमोचन समारोह

इला अरुण से उदयपुर में हुई बातचीत को पढ़े-

सवाल : आपकी आत्मकथा ‘परदे के पीछे’ के बारे में बताए?

इला अरुण : परदे के पीछे मेरी जीवनी है। मेरी ऑटोबायोग्राफी हैं। जिंदगी में लोग मुझे सिर्फ ‘चोली के पीछे’ गाने के लिए जानते है। मैं चाहती थी कि इसके पीछे जो व्यक्ति है यानि कि मैं। उसके जीवन में बहुत सारे किरदार हो सकते है। ‘जिंदगी गुजर रही है किरदार निभाते निभाते, मैं कौन हूं, यह सवाल आज भी है।’

सवाल : आप कौन है मतलब ?

इला अरुण : मैंने थिएटर, टेलीविजन, ओटीटी, फिल्म और रियलिटी शो भी किया है। इतनी लंबी जिंदगी के जो सच है, अच्छे है। मेरे तो सब सुनहरे लम्हे है। बैलगाड़ी जिसने देखी हो, मजदूरों के गाने सीखे हुए उसको सुनहरे मौके मिलते है।

जयपुर के रवींद्र रंगमंच में जो मखमल का परदा मिला था और अब जो रॉयल ओपेरा में मिला है। उस परदे से मुझे बहुत प्यार है। ये परदे के पीछे की जिंदगी है। इस किताब से लोगों को जानने को वो जीवन जानने को मिलेगा। नाटकों के लिए मेरी अपनी संस्था चलती है। मेरी मां का एक वाक्य मैं नहीं भूलती कि ‘आवेश में कभी विवेक मत खोना।’

सवाल : बेटियों को लेकर क्या कहना चाहती हैं

इला अरुण : बेटियों को लेकर पहले समझा जाता था कि बेटी हो गई तो जिदंगी में क्या होगा लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बेटियां पंख लगाकर उड़ रही है। हमारी मां तो भाग्यशाली रही कि उनकी बेटी कही न कही कुछ अच्छा कर रही है।

अभी पिछले दिनों जयपुर में थी तो पता चला कि वहां पुलिस और सिविल सेवा में कई बड़े पदों पर बेटियां ही है। अब तो जमाना बदल गया है। अब लड़कियां बड़े पदों पर है। बेटियां सबसे आगे है इसलिए मैं कहती हूं ‘वोट फॉर घाघरा।’ आज लड़कियां, इंजीनियर, मेडिकल और सिविल सर्विसेज में बहुत आगे बढ़ रही है।

उदयपुर में फैंस इला अरुण के साथ फोटो खिंचवाते हुए

उदयपुर में फैंस इला अरुण के साथ फोटो खिंचवाते हुए

सवाल : आज की नई जनरनेशन को क्या कहना चाहेगी

इला अरुण : आजकल डिप्रेशन को लेकर बहुत कुछ सुनने को मिलता है। मैं कहना चाहती हूं कि डिप्रेशन नाम का शब्द मेरे जिदंगी में नहीं है। सुसाइड शब्द से दूर रहे। हम सीखे कि ईश्वर ने आपको एक लाइफ ​दी है। करियर फेल भी हो जाए तो भी निराश नहीं होना चाहिए।

साइंस नहीं आ रही है तो और सब्जेक्ट ले ले। जॉब नहीं मिल रही तो और कुछ कर ले लेकिन डिप्रेशन में नहीं जाना है। वे बोली कि हमसे सीखो जिसके कभी ढाई नंबर से ज्यादा नहीं आए लेकिन आपकी पर्सनलटी अच्छी होनी चाहिए, निराश नहीं होना चाहिए।

सवाल : इस पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेगी ?

इला अरुण : जयपुर से कई लड़कियां फटाफट से मुंबई आ जाती है कि मुझे एक्टर बनना है। मैं कहना चाहूंगी कि किसी और का किरदार निभाना है तो उसके लिए उसमें जीना होगा। पढ़ा-लिखा होना जरूरी है। क्या अच्छा और क्या गलत है, इसे समझना होगा। जीवन में निराश और हताश नहीं होना चाहिए। पॉजिटिव होकर सोचे कि एक दरवाजा बंद हुआ तो दूसरा खुल जाएगा।

कहते है न प्यासा कुएं के पास जाता है। कुआं प्यासे के पास नहीं चला जाता है। अपने शहर में नाम बनाए और कमाए। अपने शहर के अवसरों को खोए नहीं। फिर आप पर पूरी दुनिया की नजर पड़ेगी। दूसरे से तुलना मत कीजिए, उसका मापदंड अलग था। अपने से प्यार करो, अपने को वक्त दीजिए और सबसे अहम माता-पिता की सीख को जीवन में स्थायित्व दें।

जानिए इला अरुण के बारे में

इला अरुण खलनायक (1993) मूवी के विवादित गीत ‘चोली के पीछे’ से लोगों के बीच छा गईं। लेकिन उससे कई साल पहले ही वे राजस्थानी लोक संगीत में अपने योगदान के लिए जानी जाती थीं। लगभग 50 सालों की अपनी रचनात्मक यात्रा के दौरान, इला इस क्षेत्र के कई जाने-माने नामों, अभिनेताओं और निर्देशकों, गायकों व संगीत निर्देशकों, शास्त्रीय और लोक गायकों के साथ जुड़ी रही हैं। जो उनकी कहानी में पात्रों के रूप में दिखाई देते हैं। हालांकि उनका जुनून थिएटर ही रहा हैं।

जानिए उनकी पुस्तक ‘परदे के पीछे’ के बारे में उनकी पहली किताब परदे के पीछे उनकी आत्मकथा है। इसमें उनके बचपन से लेकर वर्तमान तक के जीवन के बारे में लिख्ती है। इसमें उन्होंने मंच पर और मंच के पीछे अपने जीवन और अनुभवों की झलक साझा की है। इस पुस्तक का विमोचन उदयपुर की रेडिशन ब्लू होटल में किया गया। इसकी सहायक लेखिका अंजुला बेदी है। इस दौरान चर्चित नाट्य निर्देशक भानु भारती भी मौजूद रहे।

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2025-01-14 02:38:59
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