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ये कहना है बुरहानपुर में जागृति आदिवासी दलित संगठन के कार्यकर्ता 32 वर्षीय अंतराम अवासे का। दरअसल, बुरहानपुर कलेक्टर भव्या मित्तल ने 23 जनवरी 2024 को अवासे को 1 साल के लिए जिलाबदर किया था।
हाईकोर्ट ने 20 जनवरी 2025 को अवासे के जिलाबदर के आदेश को निरस्त कर दिया है। साथ ही सरकार को आदेश दिए कि क्षतिपूर्ति की 50 हजार रु. की राशि कलेक्टर से वसूल की जाए। ये भी कहा कि जिलाबदर अब राजनीतिक औजार बन चुका है।
दैनिक भास्कर ने ऐसे पांच केस की पड़ताल की जिसमें कलेक्टरों ने जिलाबदर की कार्रवाई की। पीड़ितों को हाईकोर्ट से राहत मिली। पड़ताल से पता चला कि ज्यादातर लोगों के खिलाफ इसलिए कार्रवाई की, क्योंकि उन्होंने आंदोलन किए थे। भास्कर ने कानून के जानकारों से भी समझा कि आखिर किन हालातों में जिला बदर की कार्रवाई की जा सकती है। पढ़िए रिपोर्ट
जानिए उन लोगों के बारे में जिन पर जिला बदर की कार्रवाई हुई
पुराने केस को आधार बनाकर जिलाबदर किया: काकोडिया रामदेव काकोडिया ने बताया कि मुझे मई 2022 में जिला बदर किया गया था। दरअसल, मैंने कथावाचक पं.प्रदीप मिश्रा के संविधान बदलने के बयान का विरोध किया था। मैंने मांग की थी कि उनके खिलाफ देशद्रोह की धाराओं में केस दर्ज किया जाए। इससे पहले भी मैंने आंदोलन किए थे, लिहाजा मुझ पर 20 मामले दर्ज थे।
पंडित मिश्रा के खिलाफ किए आंदोलन के बाद मुझे तत्कालीन कलेक्टर चंद्रमौली शुक्ला ने जिला बदर कर दिया। इस कार्रवाई का जयस समेत आदिवासी संगठनों ने जमकर विरोध किया। 24 मई 2022 को खातेगांव में बड़ा धरना-प्रदर्शन हुआ।
कलेक्टर के आदेश के खिलाफ मैंने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने तीन महीने में मामले में निराकरण के निर्देश कमिश्नर को दिए थे। जिसके बाद कमिश्नर ने जिला बदर के आदेश को रद्द कर दिया था।
राजीनामा के लिए दबाव बनाया जाता है: विष्णु अहिरवार विष्णु अहिरवार के भाई नितिन अहिरवार की अगस्त 2023 में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस मामले में बीजेपी नेताओं पर आरोप लगाया था। हत्या के बाद पीड़ित परिवार पर समझौते का दबाव बनाया था। विष्णु बताते हैं कि बहन अंजना ने केस दर्ज कराया था।
मां, चाचा राजेंद्र और अंजना तीनों इस घटना के गवाह थे। कुछ दिनों बाद दूसरे पक्ष ने चाचा राजेंद्र की भी पीट-पीट कर हत्या कर दी। राजेंद्र के शव को जब एम्बुलेंस से गांव लाया जा रहा था तो बहन अंजना की संदिग्ध परिस्थितियों में एम्बुलेंस से गिरकर मौत हो गई।
मुझे राजनीतिक दबाव में जिला बदर किया गया। कई मामले दर्ज किए गए।पुलिस अभी भी बुलाकर परेशान करती है। मैं 8 जिलों से बाहर रहा। राजीनामे के लिए मुझ पर दबाव बनाया जाता है। विष्णु का आरोप है कि पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह ने धमकी भी दी है कि तेरे भाई को मरवा दिया है, तुझे भी मरवा देंगे।
मेरा साथ कोई भी घटना होती है। एक्सीडेंट होता है या कुछ भी होता है तो इसके लिए सिर्फ भूपेंद्र सिंह और लखन सिंह जिम्मेदार होंगे।
जितने केस दर्ज किए उनका हाईकोर्ट में जवाब नहीं दिया: माधुरी जागृत आदिवासी दलित संगठन की प्रमुख माधुरी बेन ने बुरहानपुर समेत आसपास के क्षेत्रों में वनों की अवैध कटाई के खिलाफ अक्टूबर 2022 से अप्रैल 2023 तक आंदोलन किया था। माधुरी पर फॉरेस्ट ऑफेंस के केस बनाए गए। आखिर में जुलाई 2023 में उनके खिलाफ जिलाबदर की कार्रवाई की गई।
माधुरी बेन ने भास्कर से बात करते हुए कहा कि मुझ पर फॉरेस्ट ऑफेंस के 21 मामले बताए गए। कुछ केस शुरू ही नहीं हुए हैं। माधुरी बेन का जिलाबदर का टाइम पीरियड पूरा हो चुका है, लेकिन जिलाबदर की इस कार्रवाई हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। केस में अगली तारीख 17 फरवरी है।
माधुरी बेन कहती हैं कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रशासन ने इन केसेस के बारे में नहीं बताया। मेरे साथ दो और लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई। इससे साफ नजर आता है कि टारगेट कर कार्रवाई की गई है।
दो पुराने मामलों के आधार पर की जिलाबदर की कार्रवाई: दीपक दीपक ने बताया कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर हमारे संगठन ने कलेक्टर से डीजे की परमिशन मांगी थी, लेकिन कलेक्टर ने परमिशन नहीं दी। इसके कुछ दिनों बाद अनंत चतुर्दशी के जुलूस के दौरान डीजे की परमिशन दे दी। इसका हम लोगों ने विरोध किया और दो घंटे तक चक्काजाम किया था।
इस विरोध के बाद मेरे खिलाफ दर्ज मामलों की तलाश की गई। जब मैं नाबालिग था तब एक मारपीट की घटना में मुझे आरोपी बनाया गया था। इस केस को जिलाबदर की कार्रवाई का आधार बनाया गया, जबकि मैं उस मामले से दोषमुक्त हो चुका था।
साल 2021 में कोविड काल के दौरान शहर में लगने वाले मेले में झूले लगने वाले थे। झूला संचालकों से इस बात पर मेरा विवाद हुआ था। हालांकि, इस मामले में भी समझौता हो चुका था। इन दोनों केस को आधार बनाकर मुझ पर कार्रवाई की। मैंने दिसंबर 2024 में हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। कोर्ट के आदेश पर जिलाबदर का आदेश रद्द हुआ।
जिलाबदर के बाद कमजोर नहीं मजबूत हुआ
भास्कर ने अवासे से बात की तो बोले- कि जब से होश संभाला है, तभी से जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिए काम कर रहा हूं। पिछले 6 साल से ज्यादा सक्रिय हूं। मैंने देखा कि बुरहानपुर और खंडवा जिले में लगातार अवैध कटाई हो रही है। इसके बाद मैंने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू किए।
साल 2019 से 2022 के बीच मैंने कलेक्टर, डीएफओ, सीसीएफ समेत कई अफसरों को शिकायत की। घाघरेला में 12 हजार एकड़ में अवैध कटाई को लेकर 2023 में कलेक्टर दफ्तर का घेराव किया। प्रशासनिक अधिकारियों को ये रास नहीं आया। उल्टा मुझ पर अवैध कटाई करवाने के आरोप लगाते हुए जिलाबदर की कार्रवाई की।
इसके खिलाफ मैंने इंदौर कमिश्नर को अपील की, मगर उन्होंने खारिज कर दी। इसके बाद मैंने हाईकोर्ट की शरण ली। अवासे ने बताया कि जब तक केस चलता रहा तब तक कभी खरगोन, बड़वानी में रिश्तेदारों के घर रूका। जबलपुर में मित्र ने रूकने की व्यवस्था की। जो मिल जाता वो खा लेता था।
जिलाबदर के दौरान केवल दो बार पत्नी और बच्चों से मिल सका। अवासे ने कहा कि जिलाबदर की कार्रवाई भले ही राजनीतिक दबाव में की गई हो या और कोई वजह रही हो। मेरा एक साल बर्बाद हुआ। मैंने और परिवार ने जो परेशानी झेली इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार है।
हाईकोर्ट से जिलाबदर की कार्रवाई निरस्त होने के बाद अवासे के गृहग्राम सीवल में उनका स्वागत किया गया।
अब जिलाबदर की कार्रवाई के बारे में जानिए
किसी व्यक्ति से शांति भंग होने का डर तो जिलाबदर
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट तनुज दीक्षित कहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1990 के सेक्शन 5 के तहत जिलाबदर की कार्रवाई की जाती है। जो अपराधी होता है उसे जिले से बाहर कर दिया जाता है, ताकि समाज में शांति बनी रहे। दरअसल, जिला दंडाधिकारी( कलेक्टर) को लगता है कि भविष्य में उस व्यक्ति की वजह से अशांति फैलने की संभावना है, तो इस कानून का इस्तेमाल किया जाता है।
कलेक्टर तीन महीने से लेकर 1 साल तक जिलाबदर कर सकते हैं। इस दौरान अपराधी कोर्ट पेशी को छोड़कर जिले में प्रवेश नहीं कर सकता। पेशी से आने से पहले उसे संबंधित थाने में सूचना देना पड़ती है। पेशी के बाद उसे 6 घंटे के भीतर जिला छोड़ना पड़ता है।
तनुज दीक्षित कहते हैं कि जिन आरोपियों पर लूट, मारपीट या आदतन झगड़ा करने के एक से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं उनके खिलाफ जिलाबदर की कार्रवाई की जाती है। लेकिन, हाल के कुछ मामलों में देखा गया है कि आंदोलन करने या फिर चक्काजाम करने के मामलों में भी ये कार्रवाई की गई। हालांकि पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर ही जिला दंडाधिकारी फैसला लेते हैं। इस दौरान अनावेदक को सुनवाई का मौका भी दिया जाता है।
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