किसान परिवार के साथ अफीम के खेतों में डेरा डाले हैं। रात में एलईडी लाइट्स से निगरानी की जा रही है।
मध्यप्रदेश के नीमच और मंदसौर जिले में इस सीजन की अफीम खेती अपने आखिरी पड़ाव पर है। किसानों ने अफीम के डोडे में चीरा लगाना शुरू कर दिया है। चीरा लगने के बाद से पूरी तरह अफीम निकलने में करीब डेढ़ महीने का वक्त लगता है। लेकिन इस खेती को लेकर किसान सांसत
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बीते साल मंदसौर जिले के लसुडिया राठौर गांव में 70 साल की महिला की गला रेतकर हत्या कर दी गई। वजह थी- उसके घर में रखी हुई करीब 7 किलो अफीम। यही वजह है कि पूरे दिन किसान अपने परिवार के साथ खेतों में डेरा डाले हुए हैं। रात में एलईडी लाइट्स से खेतों की निगरानी की जा रही है।
किसानों का कहना है- हम अफीम को एक बच्चे की तरह पालते हैं। डोडे से अफीम निकलने के दौरान हमें चोरी से लेकर मारपीट और प्राकृतिक आपदा से लाखों के नुकसान का डर सताता रहता है। किसानों की परेशानी समझने के लिए दैनिक भास्कर की टीम रात के वक्त दोनों जिलों में अफीम के खेतों में पहुंची। रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक किसानों के बीच वक्त बिताया, पढ़िए रिपोर्ट…
किसान शाम ढलते ही अलाव जलाकर खेतों की रखवाली शुरू कर देते हैं।
दृश्य 1: रात 9 बजे, खेत किनारे खाट पर बैठे 4 किसान मंदसौर के पाड़लिया गांव के किसान कारूलाल पाटीदार अपने 3 दोस्तों के साथ खेत में मौजूद हैं। खाट पर बैठकर एक दूसरे से बातें कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हम पुश्तों से अफीम की खेती करते आ रहे हैं। सरकार नए लोगों को अफीम की खेती के लिए लाइसेंस जारी नहीं करती, उन्हीं किसानों को अफीम की खेती का लाइसेंस देती है जो पहले से इसकी खेती करते आ रहे हैं।
सरकार 10 आरी यानी आधे बीघा जमीन में खेती करने की इजाजत देती है। इस बार हम दोस्तों ने गांव के पास से सटे खेत में ही अफीम की खेती की है। इसकी वहज ये है कि यहां सुरक्षा ज्यादा हो पाती है। अफीम को हम अपने बेटे की तरह पालते हैं। गांव से 4-5 किमी दूर अपने खेतोंं में खेती करते तो जान का खतरा बना रहता है। पूरे परिवार के साथ 3 महीने वहीं डेरा डालकर अफीम की रखवाली करनी पड़ती है।
पिछले साल गांव से थोड़ी दूरी पर मेरे भाई ने अफीम की खेती की थी। रात के वक्त अफीम लूटने वाले आए। उन्होंने मेरे भाई को पेड़ से बांधा और डोडे तोड़ कर ले गए। अफीम की खेती नवंबर के महीने से मार्च महीने तक होती है। नवंबर में बुआई होती है, फरवरी में अफीम में फूल खिल जाते हैं। आधा महीना बीतते-बीतते डोडा तैयार हो जाता है। फिर उससे अफीम निकालनी शुरू कर दी जाती है।
अभी इस खेत में डोडा तैयार हुआ है। 5 से 10 दिन बाद इससे अफीम निकलनी शुरू हो जाएगी। मैं 3 दोस्तों से साथ खेत में बैठकर इसकी निगरानी कर रहा हूं।
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दृश्य 2: कड़कड़ाती ठंड में अलाव के सहारे रात बिता रहा परिवार रात 12 बजे, मंदसौर के नेतली कुर्द गांव में जंगल के करीब एक और अफीम के खेत का पता चला। यहां पहुंचने पर किसान और उसका पूरा परिवार खेत किनारे अलाव जलाकर बैठा है। किसान की पत्नी अफीम के खेत के किनारे उगी खरपतवार काट रही हैं। बच्चे खेत की दूसरी तरफ लाठी लेकर बैठे हैं।
अफीम की खेती करने वाले किसान नीलेश डागर ने कहा कि जबसे अफीम में फूल निकले हैं तभी से हम खेत में परिवार के साथ रात बिताने लगे हैं। हमने यहीं एक झोपड़ी बना ली है। यहीं खाना बनाते खाते हैं। दिन और रात की शिफ्ट के हिसाब से खेत की रखवाली करते हैं। रखवाली करनी इसलिए जरूरी है, क्योंकि हमें सरकार को तय मात्रा में अफीम देनी पड़ती है।
खाद, दवा, मजदूरी हर चीज के रेट बढ़ गए हैं, लेकिन सरकार ने पिछले 15 साल से अफीम के रेट में इजाफा नहीं किया है। ये हमारे लिए सबसे मुश्किल खेती बन चुकी है। सरकार हमें एक किलो अफीम के बदले 1200 रुपए से 1800 रुपए देती है। हमें सरकार को आधे बीघा खेत में से 7 किलो अफीम निकालकर देनी ही होती है फिर चाहे कुछ भी हो जाए।
![एलईडी लाइट से रोशनी करके किसान खेतों की निगरानी कर रहे हैं।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/02/10/grt-1_1739207946.gif)
एलईडी लाइट से रोशनी करके किसान खेतों की निगरानी कर रहे हैं।
दृश्य 3: खेत की निगरानी के लिए एलईडी लाइट लगाई रात 3 बजे, मंदसौर का बरखेड़ा गांव, यहां राहुल धाकड़ नाम के किसान ने अपने अपनी अफीम की निगरानी के लिए खेत में बड़ी एलईडी लाइट लगा रखी है। एलईडी की रौशनी से खेत में लगे अफीम के फूल चमक रहे हैं। खेत में ही किसान ने एक कमरे का पक्का मकान बना रखा है। यहां किसान अपने खेत में एक मित्र के साथ बैठा अलाव ताप रहा है। दोनों की आखों में नींद साफ झलक रही है।
किसान राहुल धाकड़ ने बताया कि हमने लाइट लगा रखी है, इससे फसल की रखवाली में काफी मदद मिलती है। इसके बावजूद अफीम की लूट और चोरी का डर हमें सोने नहीं देता। अभी परिवार के 2 लोग सोने गए हैं। सुबह 4 बजे तक हम सो जाएंगे, फिर वो खेत की रखवाली करेंगे। हमारे मंदसौर और नीमच जिले में कई किसान हथियार के साथ भी खेतों की रखवाली करते हैं।
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जंगली सुअर खेत में घुस जाते हैं, ओले गिरे तो लाखों का नुकसान अफीम के खेत में मौजूद एक अन्य किसान रामदयाल धाकड़ ने बताया कि तमाम इंतजाम के बाद भी हम जंगली सुअर से ज्यादा परेशान रहते हैं। जंगली सुअर को फसल के चारों तरफ बनी तार की बाउंड्री से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। वो जमीन में 3 से 4 फीट का गड्ढा कर खेत के अंदर घुस जाते हैं और फसल बर्बाद कर देते हैं। इसका हमारे पास एक मात्र यही इलाज है कि दिन-रात खेतों के अंदर और चारों तरफ चक्कर लगाते रहें, क्योंकि सुअर खेत के अंदर दिखाई भी नहीं देते।
जबसे ऊपर नेट लगाना शुरू किया है, तब से तोतों का फसल पर हमला तो काफी हद तक कम हो गया है। तोते अफीम के नशे के आदी हो जाते हैं तो वो किसी भी हालत में डोडे तक पहुंचने की कोशिश में रहते हैं। नील गाय रेडियम से भी नहीं डरती, लेकिन बाउंड्री के चलते कम ही नुकसान कर पाती है। हमारे लिए ते एक-एक डोडा कीमती होता है।
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मौसम की मार का खामियाजा भी भुगतते हैं कचनाल गांव के किसान दिनेश चौहान ने बताया कि मौसम की मार के चलते भी हमें बहुत ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ता है। ज्यादा बादल होना, ज्यादा ठंड पड़ना, ओस गिरना या फिर ओले पड़ना ये सबकुछ अफीम के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक होता है। बादल ओस और ठंड से फसल में काली मस्सी और इल्ली लग जाती है और वह पूरी तरह खराब हो जाती है, इसलिए हमें दिसंबर से फरवरी तक 9 से 10 बार दवाई डालनी पड़ती है। करीब 30 से 40 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। ओलावृष्टि हो गई तो हमारी फसल बर्बाद होना तय है।
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नुकसान के बाद भी किसान क्यों कर रहे हैं अफीम की खेती किसान रामदयाल धाकड़ ने बताया कि नए किसानों को अफीम के पट्टे नहीं मिलते। ये खेती वही किसान कर सकते हैं जो पुश्तैनी तौर पर इसकी खेती करते आ रहे हैं। अफीम की खेती इस पूरे क्षेत्र में एक सामाजिक प्रतिष्ठा की बात बनी हुई है। जब पता चलता है कि किसी किसान के पास अफीम की खेती का लाइसेंस है तो उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। उसके घर के बच्चों की शादी में भी कोई दिक्कत नहीं आती। समाज में ये धारणा बनी हुई है।
किसान मदन लाल ने बताया कि किसान को सीपीएस पद्धति हो या नॉन सीपीएस पद्धति, दोनों स्थिति में डोडे के अंदर से पोस्ता निकालने को मिलता है। 10 आरे यानी 0.10 हैक्टेयर जमीन से 50 किलो से 70 किलो तक पोस्ता निकल जाता है। इसकी कीमत 12 से 16 हजार रुपए क्विंटल तक होती है।
![अफीम की फसल तैयार हो चुकी है। किसान बेहद एहतियात से इसकी देखभाल कर रहे हैं।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/02/10/comp-23-3_1739208433.gif)
अफीम की फसल तैयार हो चुकी है। किसान बेहद एहतियात से इसकी देखभाल कर रहे हैं।
अफीम और पोस्ता निकालने के बाद बचा हुआ डोडा मदन लाल ने आगे बताया कि जिन किसानों को सीपीएस तकनीक से अफीम की खेती का लाइसेंस मिलता है वो तो पेड़ में लगे डोडे में एक छेद कर सिर्फ पोस्ता निकालते हैं। बाकी पूरा डोडा नारकोटिक्स डिपार्टमेंट में जमा कर देते हैं। वहीं जो किसान नॉन सीपीएस पद्धति से खेती करते हैं। वो डोडे से अफीम निकालते हैं। फिर पोस्ता निकालते हैं। इसके बाद खाली डोडा ही किसान के पास बचता है। इस डोडे के छिलके की कीमत लोकल ब्लैक मार्केट में 1 से डेढ़ लाख रुपए है।
हालांकि सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक फसल से अफीम निकलने के बाद नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को खुद की मौजूदगी में डोडे का छिलका जलाना होता है, लेकिन पिछले 4 सालों से ऐसा नहीं किया गया है।
ब्लैक में एक किलो अफीम की कीमत 2 लाख तक किसान बमुश्कित ही सरकार के तय मानक से ज्यादा अफीम निकाल पाते हैं, लेकिन कई बार अफीम ज्यादा मात्रा में उग जाती है। अगर एक किलो अफीम भी ज्यादा निकल गई तो इससे किसान को 1 से डेढ़ लाख रुपए तक मिल सकते हैं, क्योंकि ब्लैक मार्केट में अफीम की कीमत एक से दो लाख रुपए तक होने का अनुमान है।
![अफीम के खेत में नेट लगाकर तोतों से बचाव किया जा रहा है।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/02/10/comp-22-5_1739208579.gif)
अफीम के खेत में नेट लगाकर तोतों से बचाव किया जा रहा है।
किसानों को मिले हैं दो तरह के लाइसेंस पहली- नॉन सीपीएस पद्धति: इसमें किसानों को खेत से ही डोडे में चीरा लगाकर अफीम निकालनी होती है। इसके बाद किसान डोडे के से पोस्ता निकालता है। इसमें किसान को अफीम निकाल कर औसतन 6 किलो 800 ग्राम से 7 किलो तक अफीम नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को देना होता है। नई गाइडलाइन के मुताबिक जमा की गई अफीम में 4.2 किलो मॉर्फिन होना जरूरी है। ऐसा ना होने पर अगले साल किसान का लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है।
दूसरी- सीपीएस पद्धति: इसमें किसान को खेत में लगा डोडा तोड़कर नारकोटिक्स डिपार्टमेंट में जमा करना होता है। अफीम निकाल कर नहीं देनी होती है। इसमें सरकार ने किसानों को डोडा तोड़ने की अनुमति नहीं दी है। किसानों के पास बस इतनी अनुमति होती है कि वो अफीम के ऊपरी हिस्से में एक छेद कर उसके अंदर से पोस्ता निकाल सकें। इसमें किसानों को 68 किलो से 70 किलो अधिक डोडा देना होता है। नॉन सीपीएस पद्धति की तरह इसमें भी यहीं शर्त है कि दिए गए डोडे से 4.2 किलो मॉर्फिन निकलनी चाहिए। तय मात्रा से कम डोडा देने पर अगले साल संबंधित किसान का लाइसेंस रद्द हो जाता है। डोडा लेकर नारकोटिक्स डिपार्टमेंट नीमच में बने लैब में ले जाकर खुद ही उससे अफीम निकालता है।
![सुअरों से अफीम के बचाव के लिए तार का घेरा भी लगाया गया है।](https://images.bhaskarassets.com/web2images/521/2025/02/10/comp-20-5_1739208661.gif)
सुअरों से अफीम के बचाव के लिए तार का घेरा भी लगाया गया है।
अफीम की लूट के लिए हत्या तक हो जाती है, 3 केस से समझिए…
केस 1: महिला की हत्या कर 14 लाख की अफीम लूटी बीते साल मंदसौर जिले के लसुडिया राठौर गांव में 70 साल की महिला की गला रेत कर हत्या कर दी गई। वजह थी उसके घर में रखी हुई करीब 7 किलो अफीम। चंद्रकुंवर नाम की ये महिला अपने दो बेटों बलवंत सिंह और महेंद्र सिंह के साथ राजस्थान के निम्बाहेड़ा में रहती थी। बेटे सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे। यहां मध्य प्रदेश में महिला की जमीन थी।
महिला का परिवार पिछले कई सालों से अफीम की खेती करता आ रहा था। इस बार भी उसे आधा बीघा यानी 10 आरे जमीन पर अफीम की खेती का लाइसेंस मिला हुआ था। महिला ने अफीम की खेती का पट्टा बंटाई में प्रहलाद प्रजापत को दे दिया था। इसके बाद अफीम निकलने वाले महीने में महिला वापस अपने गांव आ गई। अफीम निकलने के बाद उसके घर में स्टॉक कर रख दी गई थी।
इसी अफीम को लूटने के चक्कर में महिला की हत्या कर दी गई थी। अफीम 7 किलो थी और लोकल ब्लैक मार्केट में उसकी कीमत 2 लाख रुपए प्रति किलो के हिसाब से करीब 14 लाख रुपए बताई गई थी। इसके 7 दिन बाद पुलिस ने 4 अरोपी गिरफ्तार किए थे।
केस 2: खेत से काट ले गए लाखों रुपए के डोडे मंदसौर के कचनारा गांव के रहने वाले जिलानी कुरैशी अपने परिवार के साथ अपने अफीम के खेत में ही मौजूद थे। उन्होंने बताया कि मैं दिन-रात अफीम की निगरानी कर रहा हूं। कुरैशी आगे कहते हैं कि पिछले साल 3 लाख से ज्यादा रुपए का डोडा चोरी हो गया था। उस समय डोडा कच्चा था। बस 5 से 10 दिन में वो तैयार होने ही वाला था। इसीलिए हम थोड़े बेफिक्र थे। खेत पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे, क्योंकि सबसे ज्यादा सुरक्षा की जरूरत डोडा तैयार होने के बाद पड़ती है।
मैं और मेरी पत्नी खेत में थे। रात के वक्त दोनों खाना खाने घर गए। इसी बीच चोरों ने मेरे खेत से एक चौथाई हिस्से का डोडा लिया और भाग गए। ब्लैक मार्केट में उस डोडे की कीमत तीन लाख रुपए से ज्यादा थी। इस साल भी हम डरे हुए हैं। अफीम की रखवाली में जान तक का खतरा बना रहता है।
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केस 3: चोर गिरोह चरवाहा बन करता था रेकी, रात में हमला और लूट साल 2023 के अप्रैल के महीने में मंदसौर के मल्हारगढ़ से एक अफीम चोर गिरोह को गिरफ्तार किया गया था। इस गिरोह में कुल 11 सदस्य शामिल थे। उस दौरान 4 लोगों को पकड़ा गया था। पुलिस ने इनके पास से भारी मात्रा में डोडा चूरा और पोस्ता दाना बरामद किया था।
गिरफ्तारी से एक महीने पहले मल्हारगढ़ थाना क्षेत्र के अमरपुरा गांव के किसान दीपक गायरी अपने साथी रमेश बागरी के साथ अफीम के खेत की रखवाली कर रहे थे। उन्होंने अफीम की फसल से कुछ पोस्ता दाना भी निकाल लिया था और पास ही में डोडा चूरा भी रखा था।
रात के वक्त लुटेरों की गैंग ने किसान पर हमला कर पोस्ता दाना और डोडा चूरा लूट लिया था। किसानों के साथ मारपीट की। पुलिस पूछताछ में सामने आया कि उनकी गैंग का एक मैंबर चरवाहा था और बकरी चराने का काम करता था। वो दिन भर खेतों की रेकी करता था और मौका मिलते ही लूट के लिए अपने गिरोह के सभी सदस्यों को जानकारी देकर बुला लेता था।
थानों को रखते हैं अलर्ट, औचक निरीक्षण भी करते हैं नीमच और मंदसौर जिले के भी कुछ क्षेत्रों में अफीम से संबंधित काम देखने वाले रतलाम जिला अफीम अधिकारी आशुतोष झा ने कहा कि अफीम खेती के दौरान निवारक गतिविधि की जाती है, जिसमें हम लोग खेतों मे औचक निरीक्षण के लिए जाते हैं। इस निरीक्षण में ये देखते हैं कि किसी किसान ने कहीं तय जगह से ज्यादा अफीम की खेती तो नहीं कर ली है, या खेत के किसी दूसरे हिस्से में खेती तो नहीं की है।
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