मरीज का नाम रितिका मीणा था, जो शुजालपुर की रहने वाली थी। परिजन ने बताया कि बीमारी की शुरुआत त्वचा पर जलन और फफोलों से हुई थी। देखते ही देखते हालत बिगड़ने लगी। जब तक इंदौर में इलाज होता, बहुत देर हो चुकी थी।
By Vinay Yadav
Publish Date: Thu, 13 Mar 2025 01:34:04 PM (IST)
Updated Date: Thu, 13 Mar 2025 01:34:04 PM (IST)
HighLights
- 10 लाख में से एक-दो लोगों को होती है यह बीमारी
- शुरुआत में त्वचा संबंधी बीमारी समझ हुआ इलाज
- बीमारी का प्रमुख कारण दवाइयों से होने वाली एलर्जी
विनय यादव, इंदौर। अत्यंत दुर्लभ और गंभीर त्वचा विकार स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम (एसजेएस) से पीड़ित शुजालपुर निवासी 22 वर्षीय रितिका मीणा की इलाज के दौरान मौत हो गई। एक माह से अधिक समय से उसका निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था।
शुरुआत में स्वजन इसे त्वचा संबंधी बीमारी समझ रहे थे। उन्होंने स्थानीय स्तर पर इसका इलाज भी करवाया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद इलाज के लिए इंदौर लेकर आए। यहां करीब एक माह तक वह भर्ती रही।
बीमारी की समय पर पहचान जरूरी, ताकि मिल सके इलाज
- विशेषज्ञों के मुताबिक, इस बीमारी की पहचान प्रारंभिक स्तर पर करना आवश्यक होता है। देरी के कारण मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच जाते हैं। बीमारी का प्रमुख कारण दवाइयों से होने वाली एलर्जी है।
- स्वजन सचिन मीणा ने बताया कि रितिका को पहले त्वचा पर जलन हुई। फिर फफोले होने लगे। शुरुआत में स्थानीय डॉक्टरों से इलाज करवाया। जैसे-जैसे हालत बिगड़ती गई, उसके शरीर पर फफोले फैल गए और त्वचा छिलने लगी।
- फिर इंदौर लेकर आए। उसे पहली बार आठ फरवरी को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उसे दुर्लभ विकार का पता चला था, लेकिन 14 फरवरी को छुट्टी कर दी। तबीयत बिगड़ने के बाद 26 फरवरी को फिर से भर्ती कराया था। रितिका माता-पिता की इकलौती संतान थी। लाखों रुपये इलाज में खर्च किए।
स्टीवंस-जॉनसन सिंड्रोम बीमारी के लक्षण
शुरुआती लक्षण फ्लू जैसे होते हैं, जिनमें बुखार, गले में खराश, खांसी व जोड़ों में दर्द शामिल है। कुछ दिनों बाद शरीर पर दर्दनाक लाल चकत्ते व फफोले उभरने लगते हैं। ये चकत्ते धूप में जली त्वचा या खुले घाव जैसे महसूस हो सकते हैं। रोग बढ़ने पर त्वचा का छिलना, होठों, गले और चेहरे पर सूजन जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
शरीर पर हो गए थे फफोले।
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