जींद के तीन युवकों को म्यांमार से रेस्क्यू किया गया है।-फाइल
म्यांमार में चीन के साइबर माफिया के चंगुल से छूटकर लौटे 540 भारतीयों में जींद के भी 3 युवक हैं। इनमें एक जींद शहर तो 2 सफीदों से हैं। इन युवाओं को थाइलैंड में डाटा एंट्री ऑपरेटर की जॉब का लालच दिया गया। मगर, थाइलैंड से इन्हें म्यांमार के पहाड़ी क्षेत
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म्यांमार से लौटे जींद के नवीन ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में इसके बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए। नवीन ने बताया कि वह 150 दिन उस बिल्डिंग में रहा। उनसे 18-18 घंटे काम कराते थे। खूबसूरत लड़कियों की फोटो लगा उनसे सोशल मीडिया अकाउंट बनवाए जाते। इसके बाद साइबर स्कैम के लिए बाकायदा स्क्रिप्ट देते थे। इसके बाद अमेरिका समेत दूसरे देशों के लोगों से मैसेंजर में ट्रेडिंग और दोगुने रुपए मकाने का झांसा देकर ठगी कराते थे।
जो युवक मना करते, उसके साथ मारपीट की जाती। उसके बाल-नाखून नोचे जाते। टॉयलेट जाने पर पानी नहीं देते थे। सही काम करने पर इन्सेंटिव देते तो ड्यूटी पर एक मिनट भी लेट होने और टारगेट पूरा न करने पर जुर्माना लगाने के साथ टार्चर करते थे। हालांकि वह इतना सहमा है कि अपना चेहरा जाहिर नहीं करना चाहता।

म्यांमार में फंसे भारतीय। फाइल फोटो।
जींद के युवक की जुबानी, पूरी कहानी
1. एजेंट ने कहा- थाइलैंड में नौकरी मिलेगी, वहां चीनी ठगों को सौंपा म्यांमार से लौटे जींद के नवीन ने बताया कि वह करनाल जिले के गांव गगसीना के एजेंट से संपर्क हुआ। उसने बताया कि थाइलैंड में एक कंपनी में डाटा ऑपरेटर की नौकरी है। वहां पर 60 हजार रुपए प्रति माह वेतन दिया जाएगा। एजेंट ने उससे डेढ़ लाख रुपए लेकर उनको टूरिस्ट वीजा पर 23 सितंबर 2024 को थाइलैंड भेज दिया। थाइलैंड पहुंचने पर एजेंट ने उसे चीन के साइबर ठगों को सौंप दिया।
2. 50 एकड़ में बनी बिल्डिंग में ले गए, स्टॉक मार्केट का काम बताया इसके बाद वह लोग उनको कियान सिटी से दूर थाइलैंड व म्यांमार की सीमा पर बनी नदी पार करवाकर पहाड़ी क्षेत्र में लगभग 50 एकड़ में बने क्षेत्र में ले गए। यहां बनी बिल्डिंगों के चारों तरफ काफी ऊंची चारदीवारी बनी हुई है। शुरुआत में उनको बताया कि उनकी कंपनी स्टॉक मार्केट में काम करती है और पूरे विश्व के लोगों से निवेश करवाने का काम करती है। इस काम के लिए 60 हजार रुपए महीना वेतन दिया जाएगा।
3. आधी सेलरी दी, डॉलर डलवाकर हड़प लेते, फिर ID चेंज कर देते एक माह तक 60 हजार रुपए महीने सैलरी देने के बाद टारगेट पूरा नहीं होने की बात कहकर सैलरी को घटाकर 30 हजार रुपए महीना कर दिया। मुझे कुछ ही दिन में ये एहसास हो गया था कि यह लोग साइबर ठगी का काम करते है। वह जिन लोगों के पास काम रहा था, वह क्रिप्टो करेंसी में निवेश का काम करवाते थे।
उनको सोशल मीडिया पर अमेरिका के लोगों से संपर्क किया जाता था। जब सामने वाला व्यक्ति निवेश करने के लिए तैयार हो जाता था तो ठगी करने वाले लोग अपने वॉलेट में यूएसडीटी (डिजिटल करंसी) डालर डलवा लेते और उस राशि को हड़प लेते। एक बार फ्रॉड करने के बाद तुरंत आईडी चेंज कर दी जाती और उन्हें दूसरा टास्क दे दिया जाता।
4. झपकी भी आई तो सारी सेलरी काट जुर्माना लगा देते अगर उनके पास कोई कर्मचारी ऐसा करने से मना करता तो उसके साथ मारपीट की जाती। उसे प्रताड़ित किया जाता। मेरे साथ भी कई बार मारपीट की गई। शुरुआत में एक छुट्टी दी गई और 12 घंटे काम लिया गया लेकिन बाद में 18-18 घंटे काम लेने लगे। एक मिनट भी लेट होने, काम करते समय नींद की झपकी आने पर पूरे महीने की सेलरी काट फाइन लगा देते।
5. काम छोड़ने वाले से 6 लाख मांगते, मोबाइल जमा करा लेते अगर कोई काम नहीं करना चाहता और वहां से जाना चाहता तो उससे छह लाख रुपए मांगे जाते। नवीन ने बताया कि कंपनी में लगभग 500 से अधिक भारतीयों को बंधक बनाया हुआ था। कंपनी में कंप्यूटर सिस्टम दिया हुआ था, उसी पर फेसबुक के जरिए लोगों को फंसवाते। ज्यादा लोगों के साथ फ्रॉड करने पर इन्सेंटिव देते और टारगेट पूरा नहीं होने पर फाइन करते। उनका मोबाइल जमा करवा लिया जाता था। उनका फोन टेप किया जाता था। वह फंसे हुए हैं, इसकी जानकारी देने वालों को जाने से मारने की धमकी देते थे।
बाहर कैसे निकले, डेढ़ माह चली प्लानिंग, शाह से भी बात हुई नवीन ने बताया कि हम लोगों के साथ साइबर फ्रॉड नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बाहर निकलने की प्लानिंग बनानी शुरू की। डेढ़ माह तक वह मिलकर बाहर निकलने का प्लान बनाते रहे। उसी दौरान उनका संपर्क हैदराबाद के मधुकर रेड्डी से हुआ। उसके एंबेसी से लेकर राजनीति में अच्छे लिंक थे, इसलिए मधुकर की मदद से इंडियन एंबेसी से संपर्क साधा गया।
10 फरवरी को गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी उनके ग्रुप के लोगों की बात हुई थी। इंडियन एंबेसी ने कहा कि उनकी मदद की जाएगी, कुछ दिन इंतजार करें। इससे वह हौंसले में आ गए। 20 फरवरी को उनके पास मैसेज आया कि अब उन्हें रेस्क्यू करने के लिए आ रहे हैं। 20 फरवरी की शाम को उन्होंने काम छोड़ दिया और बिल्डिंग के बाहर बैठ गए।
इस पर वहां की प्राइवेट आर्मी ने उन्हें प्राइवेट जेल में डाल दिया। 21 को सुबह आर्मी आ गई और उनका रेस्क्यू शुरू कर दिया गया। 22 फरवरी तक रेस्क्यू चला। इसके बाद आर्मी के जहाज की सहायता से बार्डर पर लाया गया। यहां दस्तावेज जांचने के बाद उन्हें गाजियाबाद लाया गया। यहां से जींद तक गाड़ी में लाया गया।
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