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कैसे भूलूं–इकलौते बेटे ने मेरी पत्नी–अपनी मां को मार डाला:पिता बोले-बेटे से पूछूंगा उसने ऐसा क्यों किया, बेटे ने बताया मैं गुस्से में था


मैं कैसे भूल सकता हूं कि मेरे इकलौते बेटे ने अपनी मां और मेरी पत्नी को मार डाला। हमने उसके साथ कभी कुछ बुरा नहीं किया था। उसने जो कहा, सब मानते रहे। मुझे समझ ही नहीं आ रहा कि हमारी परवरिश में कहां कमी रह गई? ये बालाघाट जिले के सरकारी शिक्षक किशोर कटरे का दर्द है। दरअसल, 3 मार्च को किशोर कटरे और उनकी पत्नी प्रतिमा पर दोनों के इकलौते बेटे सत्यम ने कुल्हाड़ी से जानलेवा हमला किया था। दोनों ने सत्यम को ज्यादा मोबाइल देखने पर टोका था। हमले में गंभीर रूप से घायल माता-पिता को अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल पहुंचने से पहले ही प्रतिमा ने दम तोड़ दिया। वहीं किशोर कटरे मौत को मात देकर एक हफ्ते पहले ही घर वापस लौटे हैं। मोबाइल देखने से टोकने पर 20 साल के सत्यम ने माता-पिता पर जानलेवा हमला क्यों किया? ये समझने के लिए दैनिक भास्कर बालाघाट से 27 किमी दूर किशोर के पैतृक गांव डोके पहुंचा। यहां किशोर से बात की तो वे बोले- बेटे से पूछूंगा कि उसने ऐसा क्यों किया? वहीं घटना के बाद सत्यम जेल में है। भास्कर ने जेल मैन्युअल के मुताबिक सत्यम से जेल में जाकर मुलाकात की, तो वो बोला- मैं गुस्से में था। आखिर उस दिन क्या हुआ था? जिसकी वजह से बेटे ने इतना खौफनाक कदम उठाया? पढ़िए रिपोर्ट.. पहले जानिए क्या हुआ था 3 मार्च की रात को…
भास्कर ने ये जानने के लिए किशोर कटरे और पड़ोसियों से बात की। किशोर ने बताया कि वह और उनकी पत्नी प्रतिमा हर रोज की तरह शाम 6 बजे स्कूल से लौटे थे। कटरे अपने घर से 15 किलोमीटर दूर एक गांव में सीएम राइज स्कूल में साइंस पढ़ाते हैं। पत्नी भी सरकारी स्कूल में शिक्षक थी। जब दोनों घर लौटे तो बेटा सत्यम घर में मोबाइल पर कुछ देख रहा था। माता-पिता ने उसे मोबाइल देखने से टोका। इसके बाद तीनों के बीच कहासुनी हुई। इस घटनाक्रम के करीब पांच घंटे बाद रात 11.30 बजे जब मोहल्ले में सब सो चुके थे। तब पड़ोसियों ने सत्यम को मोबाइल पर चीखते हुए सुना कि मैंने अपने मां-बाप को मार डाला है। मुझे फांसी दे दो। दरअसल, सत्यम ने ये कॉल पुलिस को किया था। पुलिस के पहुंचने से पहले पड़ोसी जाग गए थे, लेकिन उस घर की तरफ जाने की हिम्मत किसी ने नहीं की। नाम न बताने की शर्त पर एक पड़ोसी बताते हैं कि 10 मिनट के भीतर ही डॉयल 100 मौके पर पहुंच गई थी। जब सभी ने घर में जाकर देखा तो खून से लथपथ माता-पिता तड़प रहे थे। अस्पताल पहुंचने से पहले मां ने तोड़ा दम
सत्यम सीधा पुलिस की गाड़ी में सवार हुआ और बोला- मुझे फांसी दे दो। पुलिस ने खून बहने से बेसुध हो चुके माता–पिता को पहले तो शहर के अस्पताल पहुंचाया। यहां से उन्हें महाराष्ट्र के गोंदिया में बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया। अस्पताल पहुंचने से पहले मां की मौत हो चुकी थी। पिता अस्पताल में 15 दिन तक मौत से जूझते रहे। इस हफ्ते जब उन्हें अस्पताल में होश आया तो उन्हें सूचना दी गई कि उनकी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं रही और बेटा जेल में है। किशोर कटरे से जब भास्कर ने पूछा कि उन्हें क्या याद है? तो बोले- हम दोनों स्कूल से लौटे थे। सबकुछ सामान्य था। इसके बाद मुझे कुछ याद नहीं। मेरे साथ क्या घटना हुई ये भी मुझे ध्यान नहीं, शायद वे उस दिन को दोबारा याद नहीं करना चाहते। परिवार में सभी टीचर, बेटा डॉक्टर बनना चाहता था
किशोर बताते हैं कि उन्होंने सत्यम का शहर के सबसे नामचीन स्कूल में दाखिला कराया था। पहली से लेकर बारहवीं तक वो उसी स्कूल में पढ़ा। वह हर साल मेरिट में आता था। वह कहता था कि नाना, दादा, मामा-मामी और चाचा सभी टीचर हैं, मैं डॉक्टर बनूंगा। इसी ख्वाहिश में उसने 2 बार नीट की परीक्षा दी, लेकिन नाकाम रहा। जून 2024 में उसे फिर डॉक्टर बनने की धुन सवार हुई और कोटा जाकर कोचिंग करने की तैयारी की। मैं उसे कोटा ले गया, वहां मोटी फीस भरकर अच्छी कोचिंग में एडमिशन दिलाया। वहां 15 दिन भी नहीं बीते थे कि वो कहने लगा कि यहां मन नहीं लग रहा है। मैंने कहा- थोड़ा रुको। सब ठीक हो जाएगा। धीरे-धीरे 4 महीने बीत गए। अक्टूबर 2024 में सत्यम का फोन आया कि अब मुझे यहां एक दिन भी नहीं रहना है। मैं कोटा गया और उसे लेकर बालाघाट लौट आया। उसने फिर नीट का फॉर्म भरा। मैंने पूछा कि कोचिंग तो छोड़ दी, तो बोला कि ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स से तैयार कर रहा हूं। पिता बोले- मैं जमानत के लिए कोशिश नहीं करूंगा
भास्कर ने जब किशोर से पूछा कि क्या वो बेटे से मिलने जेल जाएंगे तो बोले- क्या करूंगा उस बेटे से मिलकर जिसने मेरी जिंदगी उजाड़ दी। उसने मेरी पत्नी की जान ले ली। हमने उसका क्या बिगाड़ा था? डबडबाई आंखों के बीच लंबी सांस लेकर कहते हैं कि आगे क्या होगा मुझे नहीं पता। यदि वह जेल से छूटकर हमारे पास आएगा और कहेगा कि मुझसे बड़ी गलती हो गई है तो मैं उस पर विचार करूंगा। किशोर आगे कहते हैं कि मेरे मन में उसके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है। उसने जो किया, वो उसे नहीं करना था। उनसे पूछा कि क्या बेटे की जमानत के लिए कोशिश करेंगे? तो बोले- फिलहाल तो नहीं। क्या करूंगा उससे मिलकर? पिता बोले- वो बचपन से ही गुस्सैल था
सत्यम के पिता किशोर कहते हैं कि वो बचपन से ही गुस्सैल था। अपनी बातों को मनवाने की कोशिश करता था। खुद ने ही कोचिंग सिलेक्ट की। कोचिंग करने का फैसला उसका खुद का था। हमने तो सिर्फ वहां जाकर फीस भरी। फिर लौटने का फैसला भी उसी का था। मैं गया और उसे वापस लेकर आया। इतना कहते ही फिर उनका पुत्र मोह जागृत हुआ। कहने लगे कि ये तो उसका एक पक्ष हुआ, लेकिन उसका अच्छा पक्ष ये है कि वो बहुत टैलेंटेड है। आप मुझसे जितनी बातें पूछ रहे हैं, शायद उससे न पूछ पाएं। वो सामने वाले को चंद सेकेंड में परख लेता है। भास्कर ने जेल जाकर की बेटे से मुलाकात
पिता से बात करने के बाद भास्कर ने तय किया कि बेटे से पूछा जाए कि आखिर उसने ये कदम क्यों उठाया? मां की हत्या के आरोप में वह इस वक्त जेल में है। हमने जेल प्रशासन से बात कर एक आधिकारिक मुलाकात की अनुमति मांगी। हमारे निवेदन पर उसे मुलाकात के लिए बुलाया गया। 15 दिन में पहली बार वह जेल के मुलाकाती कमरे में आया था। लोअर-टीशर्ट और बिखरे बालों के बीच जब सत्यम एक जेल प्रहरी के साथ मुलाकाती कमरे में आया तो पहले उससे सामान्य सवाल किए। उसके बाद माता-पिता पर हमले की वजह समझने की कोशिश की। उसने झिझकते हुए कुछ ऐसी बातें भी बताईं, जिससे वह शर्मिंदा था। पढ़िए सत्यम से जेल में हुई बातचीत… सवाल: खाना कैसा है जेल का? -जिंदा रहने लायक तो है। सवाल:ये सबकुछ कैसे हुआ? -वह बहुत देर तक चुप्पी साधे रहा। कुछ नहीं बोला। जानता है कि कानूनी तौर पर ये मुश्किल भरा जवाब हो सकता है। सवाल: क्या तुम्हारा कोई सोशल मीडिया अकाउंट है?
-अकाउंट है इंस्टा पर, लेकिन कभी कोई पोस्ट नहीं की। सवाल: कोई गर्लफ्रेंड?
-नहीं… मैं कभी लड़कियों से बात नहीं करता था। सवाल: मोबाइल पर क्या देखते थे ?
कोविड के दौर में मैं 9 वीं क्लास में था। उस दौरान मोबाइल पर कुछ गंदी चीजें देखने की आदत हो गई। वो ही आदत अब तक बनी रही। सवाल: पिता से मिलना चाहोगे?
बहुत देर तक चुप ही रहा। फिर बोला- क्या मिलूंगा उनसे। मेरी वजह से ही….. सत्यम बोला- दोस्त होता तो मन की बात कह पाता
सत्यम से बात करने के बाद एक बात समझ आई कि बचपन से ही उसके कोई दोस्त नहीं थे। वह मोहल्ले में भी किसी से बात नहीं करता था। परिवार के बड़े भाइयों से भी कभी-कभार ही उसकी बात होती थी। उसने बातचीत में ये माना कि यदि उसका कोई दोस्त होता तो शायद वह उससे अपने मन की बात कह पाता। वह अपने माता–पिता से भी अपने मन की बात नहीं कह पाता था। पैसों की कमी के सवाल पर वह बोला कि पिता ने कभी पैसों की कमी नहीं होने दी, लेकिन जो कुछ हुआ सब अचानक हुआ। सत्यम से जब जेलर ने पूछा कि क्या इस साल नीट की परीक्षा देना चाहते हो, तब भी वह चुप्पी साधे रहा। बोला– पता नहीं अब आगे क्या होगा? कैसा होगा? इतना कहकर सत्यम फिर उन 106 कैदियों के बीच वापस चला गया। सत्यम की मनोदशा को लेकर भास्कर ने जब वारासिवनी जेल के जेलर अभय वर्मा से पूछा तो वो बोले- वह बहुत ही संवेदनशील लड़का है। जेल आकर वह मुझसे कहता रहा कि आप मुझे फांसी क्यों नहीं दे देते? दरअसल, इंसान परिस्थितियों का गुलाम होता है। परिस्थितियों के चलते ही वह खौफनाक कदम तो उठा लेता है, मगर बाद में उसे अपने किए पर पश्चाताप होता है।
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