डायबिटीज मरीजों पर भोपाल के पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद कॉलेज में शोध चल रहा है। यह शोध केंद्रीय आयुष मंत्रालय करवा रहा है। इसमें डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। लगभग 70 प्रतिशत काम हो गया है। शोध पूरा होने में लगभग एक वर्ष और लगेगा। इसके बाद केंद्र सरकार शोध के परिणाम सार्वजनिक करेगी।
By Prashant Pandey
Publish Date: Fri, 06 Dec 2024 07:50:45 AM (IST)
Updated Date: Fri, 06 Dec 2024 08:07:06 AM (IST)
HighLights
- डायबिटीज के आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार पर बड़ा शोध, 1050 रोगियों पर प्रयोग जारी।
- तीन समूहों में बांटकर मरीजों का जीवनशैली में बदलाव, औषधि व पंचकर्म से उपचार।
- भोपाल के आयुर्वेद कॉलेज में शोध होने के बाद परिणाम केंद्र सरकार सार्वजनिक करेगी।
शशिकांत तिवारी, नईदुनिया, भोपाल(Diabetes Treatment)। डायबिटीज (मधुमेह) पर आयुर्वेदिक औषधियों और पंचकर्म का प्रभाव जानने के लिए एक बड़ा शोध भोपाल के पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय आयुर्वेद कॉलेज में चल रहा है। यहां 1050 रोगियों पर किए जा रहे शोध के प्रारंभिक परिणाम उत्साहित करने वाले हैं।
डॉक्टरों ने बताया कि जिन रोगियों का एचबीए1सी स्तर (वैल्यू) 13 यानी तीन महीने का औसत शुगर लेवल 350 के करीब था उन्हें पंचकर्म की वस्ति क्रिया (दस्त करवाने) के बाद औषधियां देने से कुछ मरीजों का एक सप्ताह तो कुछ का 15 दिन में ही शुगर लेवल 200 तक आ गया।
1050 रोगियों को तीन समूहों में बांटा गया
शोध टीम में शामिल काय चिकित्सा के सहायक प्राध्यापक डॉ. विवेक शर्मा बताते हैं कि 1050 रोगियों को औचक (रैंडम) आधार पर बराबर संख्या वाले तीन समूहों में बांटा गया है। एक समूह को पंचकर्म के साथ औषधियां, दूसरे को मात्र औषधियां और तीसरे को सिर्फ खान-पान व जीवन शैली में परिवर्तन करवाया गया है।
तीन महीने तक उन पर प्रयोग किया जाना है, हालांकि प्रारंभिक परिणामों में अधिकतर रोगियों की शुगर नियंत्रित मिल रही है। इनमें किसी को एलोपैथी दवाएं नहीं दी जा रही हैं।
इस तरह के दिखे परिणाम
पंचकर्म विभाग की सह प्राध्यापक डॉ. कामिनी सोनी ने बताया कि आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देश के अनुसार जिन रोगियों का एचबीए1सी 10 से कम है उन्हें ही शोध में शामिल किया है, जिससे स्वास्थ्य को लेकर कोई जोखिम न हो।
अभी एक माह में अलग-अलग समय में अस्पताल में भर्ती हुए 10 रोगियों को पंचकर्म और दवा देने के बाद देखने में आया है कि आठ का एचबीए1सी स्तर काफी सुधरा हुआ मिला। औसत रूप से मानें तो इसका स्तर 10 से घटकर छह के आसपास आ गया।
इसके पहले भर्ती हुए रोगियों में परिणाम भी लगभग ऐसे ही थे। अपवादस्वरूप कुछ रोगी तो ऐसे भी थे जिनका एचबीए1सी 13 था। पंचकर्म के बाद औषधियां देने से यह छह से सात के बीच आ गया है। बता दें, एचबीए1सी जांच रक्त में शुगर का तीन महीने का औसत स्तर बताती है।
यह होता है पंचकर्म
- वमन – उल्टी कराना। इसके कई तरीके हैं। कई लाभ हैं पर ज्यादा उपयोग कफज रोग में होता है।
- विरेचन – दस्त कराना। इसका अधिक उपयोग पित्त संबंधी बीमारियों में किया जाता है।
- अनुवासन वस्ति – इसमें एनिमा की तरह काम होता है। इसके लिए अलग-अलग तरह के तेल का उपयोग किया जाता है।
- निरूह वस्ति – इसमें काढ़े का उपयोग कर दस्त कराया जाता हैं। पेट और हार्मोन संबंधी बीमारी में अधिक उपयोगी है।
- नस्य कर्म – इसमें नाक से औषधियां दी जाती हैं।
70 प्रतिशत काम हो गया है
कॉलेज की रिसर्च एथिक्स कमेटी की स्वीकृति के बाद 1050 रोगियों पर यह शोध किया जा रहा है। इतनी संख्या में मरीजों पर देश में पहली बार शोध हो रहा है। इसमें रोगियों से बाकायदा सहमति पत्र लिया गया है। लगभग 70 प्रतिशत काम हो गया है। शोध के शुरुआती परिणाम बहुत उत्साहजनक रहे हैं। – डॉ. उमेश शुक्ला, प्राचार्य, पं. खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद कॉलेज
औषधि पैंक्रियाज को ठीक करने का काम करेगी
हर पैथी का अपना सिद्धांत है, इसलिए उस पर संदेह नहीं करना चाहिए। डायबिटीज के उपचार में एलोपैथी व अन्य पैथी के सिद्धांत कुछ हद तक समान हो सकते हैं। जैसे जीवन शैली में बदलाव। पंचकर्म भी लगभग उसी तरह की प्रक्रिया है। जहां तक दवा की बात है जो आयुर्वेदिक औषधि पैंक्रियाज को ठीक करने या मोटापा कम करने पर काम करेगी वह डायबिटीज में भी लाभकारी होगी। अभी सामान्य जनसंख्या में शहरी क्षेत्र में लगभग 10 से 12 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में छह से आठ प्रतिशत लोग डायबिटीज से प्रभावित हैं। – डॉ. मनुज शर्मा, हार्मोन रोग विशेषज्ञ, गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल
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