मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में नर्मदा नदी के तट पर ही रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद ने तपस्या की थी। उनके तपस्या स्थल आज नर्मदा के बैकवाटर में डूब गए हैं। नर्मदा पुराण के रेवाखंड में यहां जांगरवा गांव के पास मेघनाथ की तपस्थली होने का उल्लेख मिलता है। इस स्थान का नाम तभी से मेघनाथ तीर्थ पड़ गया था।
By Prashant Pandey
Publish Date: Sat, 12 Oct 2024 07:54:53 AM (IST)
Updated Date: Sat, 12 Oct 2024 08:02:41 AM (IST)
युवराज गुप्ता, नईदुनिया बड़वानी। भगवान श्रीराम के साथ युद्ध करने वाले लंका के राजा महाबली रावण, भाई कुंभकर्ण और पुत्र मेघनाद ने नर्मदा नदी के तट पर तपस्या की थी। यह स्थान वर्तमान मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में है। दुर्भाग्य से ये तपस्थली नर्मदा नदी के बैकवाटर में डूब गई हैं।
इसी तरह यहां दत्त मंदिर के सामने स्थित महाभारतकालीन शिवमंदिर भी डूब गया है। बता दें कि गुजरात में बने सरदार सरोवर बांध के कारण नर्मदा का बैकवाटर मध्य प्रदेश के बड़वानी, आलीराजपुर, झाबुआ जिलों में फैला हुआ है। इसी में ये तपस्थली सहित अन्य कई मंदिर डूबे हुए हैं।
मेघनाद आकाश मार्ग से जा रहा था
यह वही क्षेत्र है, जहां रामायणकालीन कई पुरातन धरोहरें हैं। इनमें से कई अब भी नर्मदा के पानी से बाहर हैं, किंतु उपेक्षित हैं। नर्मदा नदी के पौराणिक स्थलों पर शोध कर पुस्तक लिखने वाली लेखिका डॉ. मोहिनी शुक्ला के अनुसार नर्मदा पुराण के रेवाखंड 56 (अ) के अनुसार रावण का पुत्र मेघनाद जब आकाश मार्ग से धवड़ीकुंड (वर्तमान समय में मप्र के बड़वानी जिले के गांव जांगरवा के समीप) से दो शिवलिंग लेकर जा रहा था।
तब रास्ते में उसके हाथ से शिवलिंग छूटकर नर्मदा नदी में गिर गया। इसे नर्मदाजी की कृपा समझकर मेघनाद ने यहीं पर शिव पूजन कर शिवलिंग को स्थापित कर दिया। तभी से इस स्थल का नाम मेघनाद तीर्थ प्रसिद्ध हुआ। यहां श्राद्ध, तर्पण, ब्रह्मभोज का सौ गुना फल मिलने की लोकमान्यता है। नौकानुमा यह पुरातन मंदिर अब पूरी तरह नर्मदा के बैकवाटर में जलमग्न है।
महेश्वर में बनाया था रावण को बंदी
पश्चिम निमाड़ के साहित्यकार एवं इतिहासविद् हरीश दुबे बताते हैं- निमाड़ अंचल में स्थित महेश्वर का अस्तित्व सदियों पुराना है। रामायण व महाभारत कालीन दस्तावेजों में भी इसका उल्लेख मिलता है।
लोक प्रचलित कथानुसार लंकापति रावण विश्व विजय का सपना लिए युद्ध करने निकला, तब उसका सामना माहिष्मति (अब महेश्वर) के सम्राट सहस्त्रबाहु अर्जुन से हुआ। तब सहस्त्रबाहु अर्जुन विजयी हुए और उन्होंने रावण को बंदी बनाकर अपने घुड़साल में छह माह तक कैद रखा।
रामायण में है प्रसंग का उल्लेख
साहित्यकार हरीश दुबे के अनुसार इस प्रसंग को गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस के सुंदरकांड में हनुमान-रावण संवाद के दौरान लिखा है। चौपाई है- जानऊ मैं तुम्हरि प्रभुताई, सहसबाहु सन परी लराई।
वर्तमान समय में यहां स्थिति किला के पूर्वी तरफ एक टीले रूप में यह स्थान है, जहां शिवलिंग भी स्थापित है। इसे रावणेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है। उपेक्षा के चलते यह स्थान कंटीली झाड़ियों और बढ़ते अतिक्रमण में गुम है।
निमाड़ की ऐतिहासिक धरोहरों को सरकार सहेज रही है। खंडहर हो रही धरोंहरों को भी संरक्षित करेंगे। – डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी, राज्यसभा सदस्य
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