इसरो का कहना है कि समुद्र में गिरे हुए हिस्से को हम ढूंढ नहीं पाएंगे। इसरो के अनुसार, कार्टोसैट-2 सैटेलाइट को 10 जनवरी 2007 को लॉन्च किया गया था। तब उसका वजन 680 किलोग्राम था। वह सैटेलाइट पृथ्वी से 635 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूर्य के पोलर ऑर्बिट में काम कर रहा था।
Cartosat-2: Atmospheric re-entry
🛰️ Cartosat-2, ISRO’s high-resolution imaging satellite, bid adieu with a descent into Earth’s atmosphere on February 14, 2024, as predicted.ISRO had lowered its orbit from 635 km to 380 km by early 2020.
This strategic move minimized space… pic.twitter.com/HJCWONymS9
— ISRO (@isro) February 16, 2024
इसरो के अनुसार, कार्टोसैट-2 अगर खुद ब खुद नीचे आता तो ऐसा होने में लगभग 30 साल लगने की उम्मीद थी। हालांकि इसरो ने फैसला किया कि वह कार्टोसैट-2 के बचे हुए फ्यूल का इस्तेमाल करके उसकी परिधि को कम करेगा। इसके बाद कार्टोसैट-2 को पृथ्वी के वायुमंडल में सफलता के साथ गिराया गया।
ऐसा करके भारत ने अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के लिए नजीर पेश की है। क्योंकि अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स का मलबा हमारे मौजूदा मिशनों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। सैटेलाइट रूपी यह कचरा स्पेस में तैरता रहता है। ज्यादातर स्पेस एजेंसियां इसे इसके हाल पर छोड़ चुकी हैं।
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ISRO
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2024-02-16 13:26:03
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