जिस जगह पर ज्वालामुखी मिला है, वहां तीन और ज्वालामुखी एस्क्रेयस मॉन्स, पावोनिस मॉन्स और अर्सिया मॉन्स भी स्थित हैं। दिलचस्प है कि यह कई दशकों से एक्टिव है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके साउथईस्ट हिस्से में एक ऐसा ज्वालामुखी भंडार है, जिसके नीचे ग्लेशियर की बर्फ मौजूद हो सकती है।
खोज में इतना वक्त क्यों लग गया
मंगल कोई छोटा ग्रह नहीं है। वहां लैंड करने वाले मिशन एक निश्चित एरिया में उतरते हैं। तमाम स्पेसक्राफ्ट मंगल ग्रह का चक्कर लगाते हैं और वहां मौजूद ऑब्जेक्ट को टटोलते हैं। इस ज्वालामुखी को 1971 से देखा जा रहा था, लेकिन कन्फर्म नहीं था कि वह ज्वालामुखी है। सिर्फ एक स्ट्रक्चर की जानकारी थी।
वैज्ञानिकों ने इलाके को टटोलना शुरू किया तो पता चला कि वह एक ज्वालामुखी है। जांच में यह भी पता चला कि ज्वालामुखी के आसपास 5 हजार वर्ग किलोमीटर के एरिया में ज्वालामुखी डिपॉजिट्स भी हैं, जो अलग-अलग आकार में मौजूद हैं।
दुनिया की तमाम स्पेस एजेंसियां मंगल ग्रह पर अपने मिशन भेज रही हैं। एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स भी इस दौड़ में शामिल है। वह दुनिया के सबसे भारी रॉकेट स्टारशिप (Starship) को टेस्ट कर रही है। अगर वह रॉकेट सफल होता है, तो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को मंगल ग्रह तक पहुंचाना आसान हो जाएगा।
Source link
#Mars #मटर #मगल #गरह #पर #मउट #एवरसट #स #ऊच #जवलमख #मल
2024-04-22 06:26:57
[source_url_encoded