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ये कहते हुए रोहित का गला भर आता है। उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। वो कहता है कि दुख इस बात का है कि मेरे डॉक्टर पिता और मां ने मेरे लिए जो सपने देखे थे, इस नशे ने उनके सपनों को भी तोड़ दिया। रोहित नशा मुक्ति केंद्र में रहकर अब इससे बाहर आने की कोशिश में जुटा है।
ये केवल रोहित की कहानी नहीं है बल्कि ऐसे हजारों युवा हैं जिनका करियर नशे ने चौपट कर दिया है। भोपाल में एमडी ड्रग्स की 1814 करोड़ फैक्ट्री पकड़े जाने के बाद दैनिक भास्कर ने नशे की गिरफ्त में आए युवाओं से बात की। उनसे समझा कि वे कैसे इसकी चपेट में आए, इसका उनके परिवार पर क्या असर पड़ा।
साथ ही एक्सपर्ट से बात कर जाना कि आखिर कैसे नशे की लत लगने से पहले ही खुद को कैसे संभाला जा सकता है। पढ़िए इन तीनों युवाओं की कहानी…
पहला केस: रोहित को कॉलेज में लगी ड्रग्स की लत
नशा मुक्ति केंद्र में अपना इलाज करवा रहा रोहित इंदौर का रहने वाला है। उसके पिता डॉक्टर और मां समाज सेविका हैं। रोहित कहता है- मैं परिवार का इकलौता बेटा हूं। माता-पिता ने शहर के नामी इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला करवाया। जब 10वीं में था तब दोस्तों के साथ पहले बीयर और फिर हार्ड ड्रिंक्स लेने लगा।
पापा अस्पताल चले जाते, मां अपने सोशल वर्क में बिजी रहती, सो मनमानी के लिए बहुत समय था। छिपकर नशा करते हुए मेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई। घरवालों ने बेंगलुरु के नामी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला करवाया। इंटरनेशनल कॉलेज में कई देशों के स्टूडेंट पढ़ने आए थे। हमारे हॉस्टल के लड़के खुलेआम मारिजुआना, स्मैक और एमडी ड्रग्स का इस्तेमाल करते थे।
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कंप्यूटर इंजीनियर की पढ़ाई छोड़ ड्रामा थिएटर जॉइन किया
रोहित ने आगे कहा फर्स्ट ईयर के आखिर में नशे की ऐसी लत लग चुकी थी कि एग्जाम देते हुए मैं ब्लैक आउट हो जाता था। इसी बीच कॉलेज में शोज करने लगा। मैंने सोचा कि कंप्यूटर इंजीनियर की फील्ड मेरे लिए नहीं है। मुझे स्टेज शो करना चाहिए।
माता-पिता का इकलौता था, इसलिए उन्होंने मुझे रोका नहीं। मगर, मेरे दिमाग में था कि स्टेज शो करूंगा तो ड्रग्स लेने से कोई रोकने वाला नहीं होगा। इस कल्चर में फिट बैठूंगा। मैं दिल्ली पहुंच गया। वहां करोल बाग में एक ड्रामा थिएटर में सिलेक्शन हुआ। वहां शाम तक प्रैक्टिस करता और फिर इंटरनेशनल बीपीओ के लिए काम करता।
मैं 40 हजार रु. महीना कमाने लगा था। माता-पिता को कोई न कोई जरूरत बताकर उनसे 50-60 हजार रु. मंगवा लेता। एक लाख रु. हर महीना मेरे पास था। इसके बाद भी मेरे खर्च पूरे नहीं हो रहे थे।
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मेरी गर्लफ्रेंड ने माता-पिता को कहा इसे बचाने का आखिरी मौका है
रोहित ने बताया कि मेरी गर्लफ्रेंड मेरी हालत को जानती थी। मैं नशे में नॉर्मल रहता उसके बाद जब नशा उतरता तब मेरी हालत खराब होने लगती । मैं तड़पने लगता। एक बार तो दिल्ली की कड़कड़ाती सर्दी में रात को बाथरुम में ठंडे पानी के नीचे बैठ गया। पूरी रात ऐसा ही बैठा रहा।
दूसरे दिन जब उठा तो मेरी गर्लफ्रेंड रो रही थी। वो रात भर मेरे साथ रही, मगर मुझे कुछ याद नहीं रहा। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा। मेरे साथ उसका करियर भी बर्बाद हो रहा था। आखिर मैंने उसे छोड़ दिया।उसके जाने के बाद भी मेरी नशे की आदत नहीं छूटी। कभी कभी मरने का ख्याल आया।
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पापा डिप्रेशन में चले गए, मम्मी की मुस्कराहट गायब हो गई
एमडी ड्रग्स के नशे में मैंने अपना करियर, फ्यूचर, पैसा सब खो दिया। पापा-मम्मी मुझे इंदौर लेकर आए। ड्रग्स न मिलने की वजह से मुझे दौरे पड़ते। मां रात भर मेरे सिर पर तौलिया रखकर मुझे शांत करने की कोशिश करती। पापा डिप्रेशन में जाने लगे थे उन्हें रात भर नींद नहीं आती थी।
एक दिन मैंने देखा कि मां सोफे पर एक कोने में बैठी हुई है, वो रात भर वहीं बैठी थीं। हमेशा हंसते- मुस्कराते रहने वाली मेरी मां को मैंने इतना असहाय और उदास नहीं देखा था। आखिरकार कई जगह तलाश करने के बाद उन्होंने मुझे नशा मुक्ति केंद्र भेजा। पिछले छह महीने से मैं यहीं पर अपना इलाज करवा रहा हूं।
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केस2: देश भर में भागवत कथाएं की, अब रिहेब सेंटर में
ये कहानी सुमित की है। जो इस समय भोपाल के नजदीक रातीबड़ के एक नशा मुक्ति केंद्र में रहकर अपना इलाज करवा रहा है। सुमित श्योपुर के नामी पंडित परिवार से ताल्लुक रखता है। सुमित से पूछा कि कैसे वह ड्रग्स के दलदल में फंसा तो उसने बताया कि हमारे दादाजी गांव के बड़े पंडित थे। उनके यजमान 27 गांवों में हैं।
वे चाहते थे कि परिवार में उनके बाद कोई पांडित्य की परंपरा को आगे बढ़ाए। उन्हें मेरे भीतर संभावना नजर आई। मेरा जयपुर के एक नामी संस्थान में पढ़ने के लिए भेज दिया। इसके बाद मैं वृंदावन गया। वहां से मुझे भागवत कथाएं मिलना शुरू हो गईं। रामेश्वर, बद्रीनाथ से लेकर मध्यप्रदेश और राजस्थान के कई शहरों में भागवत कथाएं करना शुरू कर दी।
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दोस्तों के कहने पर नशे की शुरुआत की तो इस दलदल में फंस गया
सुमित ने बताया कि इसी बीच परिवार वालों ने शादी कर दी। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। एक दिन अचानक खालीपन महसूस होने लगा। कस्बे में कुछ ऐसे लोगों के साथ उठना बैठना शुरू हुआ जो नशे के आदी थे। पंडिताई करता था इसलिए शराब नहीं पी सकता था। दोस्तों के कहने पर मैंने अफीम लेना शुरू कर दिया।
इसके बाद स्मैक और एमडी ड्रग्स का नशा करना शुरू कर दिया। शुरुआत में ये बात मैंने परिवार से छिपाकर रखी, लेकिन राग-द्वेष और नशा कब तक छिपा सकते हैं। पत्नी ने समझाया तो कलह होने लगी। मेरा खुद पर नियंत्रण ही नहीं बचा था। परिवार वालों ने नशा मुक्ति केंद्र की तलाश शुरू की और यहां आ गया। पिछले तीन महीने से यहीं पर हूं और पूरी तरह से ठीक महसूस कर रहा हूं।
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केस3: जिस दिन सिविल जज का इंटरव्यू था तब मैं बार में बैठा था
ये कहानी नीरज की है। इंदौर के रहने वाले नीरज के पिता क्लास वन अधिकारी थे। वे कहते हैं कि उस समय अधिकारियों को लाल बत्ती की गाड़ी मिलती थी। बचपन से सुख सुविधाओं में पला बढ़ा। मैं पढ़ने में होशियार था, फुटबॉल का नेशनल लेवल का खिलाड़ी था। सब कुछ ठीक था, लेकिन मुझे पता ही नहीं चला कि कब शराब ने मुझे अपना गुलाम बना लिया था।
नीरज कहते हैं कि जितनी पॉकेटमनी मिलती थी वो सब शराब में खर्च कर देता था। मेरी पढ़ाई पूरी हुई तो सिविल जज का एग्जाम दिया। मेरे सबसे ज्यादा नंबर आए। इंटरव्यू में यदि कम मार्क्स भी आते तो भी सिलेक्शन पक्का था। इंटरव्यू वाले दिन को याद कर नीरज कहते हैं मैं इंटरव्यू के लिए तैयार हुआ। दो घंटे का समय बाकी था।
उसी समय अचानक मुझे क्या हुआ कि मैं घर के पास बने बार में पहुंच गया। मैंने खुद को समझाया अभी दो घंटे हैं एक बीयर पीने से क्या फर्क पड़ेगा। मैंने बीयर ऑर्डर की उसके बाद तो मेरा मुझ पर काबू ही नहीं रहा। दो घंटे कब निकल गए पता ही नहीं चला।
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2006 में रिहेब सेंटर से ठीक होकर आया, फिर बहक गया
नीरज कहते हैं कि जज बनने का मौका मैंने खो दिया था। मगर परिवार ने मेरी स्थिति को समझते हुए बेंगलुरु के सबसे अच्छे रिहेब सेंटर में भेजा। छह महीने बाद मैं बाहर आया। शराब की लत छूट गई थी। मैं वकील था ही, जल्द ही वकालत भी जम गई।
इसी बीच शादी हो गई। जीवन में सेट हो गया था। तब मेरे मन में ख्याल आया कि सब कुछ ठीक चल रहा है यदि चोरी छिपे नशा किया भी तो किसी को पता नहीं चलेगा। यही मेरी गलती थी। मैं एक बार फिर नशे के दलदल में फंस गया।
इस बार मैं अफीम और एमडी ड्रग्स का नशा करने लगा। इसमें ऐसा फंसा कि करियर, परिवार सब खत्म हो गया। इसके बाद मुझे दो बार और रिहेब सेंटर भेजा गया, लेकिन बाहर निकलने के कुछ समय बाद फिर मैं नशा करने लगता। अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैंने कितनी बड़ी गलती की। अब मुझे संभालने वाले पिताजी भी नहीं रहे, लेकिन पिछले 10 साल से नशे से दूर हूं।
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रिहेब सेंटर के संचालक बोले- 10 में से चार युवा एमडी ड्रग्स के शिकार
रातीबड़ में श्री जीकेएस नशा मुक्ति केंद्र चलाने वाले चेतन दंडौतिया कहते हैं- पिछले 12 सालों से रिहेब सेंटर चला रहा हूं। न केवल नशा करने वालों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ी है, बल्कि नशे का ट्रेंड भी बदल गया है। साल 2015-16 तक सबसे ज्यादा शराब के नशे के पीड़ित आते थे।
यदि 10 लोग भर्ती होते थे तो सात से आठ की संख्या ऐसे लोगों की होती थी जो शराब की लत छोड़ना चाहते हैं। गांजा, अफीम और स्मैक की लत वाले एक या दो केस होते थे। साल 2020 से ट्रेंड बदल गया है। अब एमडी ड्रग्स के नशे के शिकार लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
अब 10 में चार केस स्मैक और एमडी के शिकार होने वालों के हैं। ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट हैं। चेतन कहते हैं कि मेरे पास एक ऐसा युवक आया था जो बेहद प्रतिभाशाली था, मगर उसे एमडी की लत लग गई थी। उसके माता-पिता केरल के रहने वाले थे और भोपाल में अधिकारी थे।
एमडी ड्रग लेने के बाद उस युवक के दिमाग पर ऐसा असर हुआ कि उसे लगा कि 500 साल जीना है। ड्रग्स लेने के बाद वह घंटों योग करता। केवल पानी पीकर जीने लगा। दिन भर में केवल एक बिस्कुट खाता। जब तक नशे के प्रभाव में रहता तब तक वो ठीक रहता। उसके बाद नशे का असर कम होता तो उसकी हालत खराब हो जाती।
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एक्सपर्ट बोले- नशे की लत शारीरिक नहीं मानसिक समस्या
मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि नशे की लत केवल शारीरिक समस्या नहीं है, बल्कि ये मानसिक समस्या भी होती है। कोई व्यक्ति नशे का आदी क्यों होता है इसके लिए वे चार कारण बताते हैं।
- जेनेटिक प्रॉब्लम: डॉ. त्रिवेदी के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति नशे का आदी है तो उसकी आने वाली पीढ़ी में नशे की प्रवृत्ति बढ़ने के चांस ज्यादा होते हैं।
- पीयर प्रेशर: ये दोस्तों की वजह से होता है। खास तौर पर युवा वर्ग किसी भी कीमत पर खुद को कमतर बताना नहीं चाहता, इसलिए दूसरों को देखकर नशे का आदी होता है।
- तनाव दूर करने : हर व्यक्ति अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल जिंदगी में तनाव के दौर से गुजरता है। इसे दूर करने के लिए कुछ लोग नशे का सहारा लेते हैं।
- प्रयोग के तौर पर: कुछ लोग नशे की शुरुआत प्रयोग के तौर पर करते हैं। इसका अनुभव लेने की उनमें उत्सुकता होती है।
नशे की लत से कैसे निपटें?
- धीरे-धीरे नहीं एकदम से नशा छोड़ें: एक्सपर्ट के मुताबिक धीरे-धीरे नशा छोड़ने के बजाय एकदम से नशे की चीजों से दूरी बना लें।
- आत्मविश्वास बढ़ाना होगा: यदि फैसला किया कि नशा छोड़ना है तो आत्मविश्वास बढाएं। खुद पर भरोसा करना शुरू करें कि इस काम को फिर से नहीं दोहराएंगे।
- घर वालों का सपोर्ट: रिश्तेदार और घर के लोगों का सपोर्ट जरूरी है। ताना मारने की बजाय व्यक्ति के साथ खड़े रहें।
- पुरानी बीमारी का इलाज करें: नशे का कारण यदि एक बीमारी की वजह से है, तो पहले उसका इलाज कराएं।
- नया प्लान तैयार करें: आप ये कारण जानते हैं कि नशा करना क्यों शुरू किया था तो ऐसा प्लान बनाएं कि पुरानी स्थिति दोबारा सामने आती है तो क्या करेंगे।
- लाइफस्टाइल में बदलाव: मानसिक के साथ शारीरिक रूप से भी तैयार होना होगा। संतुलित डाइट लें, रात में अच्छी नींद लें और एक्सरसाइज को रूटीन में शामिल करें।
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