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MP में 5 हजार होम गार्ड्स के पद खाली, प्रदेश सरकार ने केंद्र से मांगा बजट

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मध्य प्रदेश में होम गार्ड्स के वेतन और भत्तों के लिए केंद्र सरकार का 25% हिस्सा पिछले 20 वर्षों से नहीं मिला है, जिससे राज्य सरकार को बजट की कमी का सामना करना पड़ रहा है। लगभग 5,000 रिक्त पदों पर भर्ती नहीं हो पा रही है, और राज्य सरकार केंद्र से 500 करोड़ रुपये की राशि की मांग करेगी।

By Neeraj Pandey

Publish Date: Mon, 14 Oct 2024 07:48:33 PM (IST)

Updated Date: Mon, 14 Oct 2024 07:53:03 PM (IST)

5,000 होम गार्ड्स के पद रिक्त हैं।

HighLights

  1. केंद्र का 25 फीसदी हिस्सा 20 वर्षों से नहीं मिला
  2. हर साल 300 करोड़ रुपये होम गार्ड्स पर खर्च
  3. राज्य सरकार केंद्र को पत्र लिखकर राशि मांगेगी

राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। होम गार्ड्स के वेतन-भत्ते से लेकर अन्य व्यवस्थाओं के लिए कुल बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार देती है, पर बीते लगभग 20 वर्ष से केंद्र का हिस्सा प्रदेश को नहीं मिल पाया है। केंद्र ने राशि देना बंद कर दिया तो राज्य सरकार ने भी मांग नहीं की। अब राज्य सरकार के पास बजट की कमी के चलते कई काम प्रभावित हो रहे हैं।

होम गार्ड्स की भर्ती

सबसे अहम तो यह कि इनके रिक्त पदों पर भर्ती नहीं हो पा रही है। अभी लगभग पांच हजार पद रिक्त हैं। इन पदों पर तीन चरणों में भर्ती करने की तैयारी है। इसके अतिरिक्त महाकाल के लिए 480 पदों और पुलिस बैंड के लिए 800 पदों पर होम गार्ड्स की भर्ती की जानी है। इस कारण राज्य सरकार केंद्र को पत्र लिखकर बीते वर्षों की राशि देने की मांग करेगी।

होम गार्ड निदेशालय ने इस संबंध में पूरी जानकारी गृह विभाग को भेज दी है। यहां से केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजा जाएगा। यह राशि 500 करोड़ रुपये से अधिक हो सकती है। उल्लेखनीय है कि अभी प्रतिवर्ष लगभग 300 करोड़ रुपये होम गार्ड्स के वेतन-भत्तों पर खर्च हो रहे हैं। इस लिहाज से हर वर्ष करीब 75 करोड़ रुपये केंद्र से मिलना चाहिए। बजट की तंगी के चलते 10 वर्ष से होम गार्ड्स के पदों पर भर्ती नहीं हो पाई है।

भाषायी अकादमियों के बजट में 50 प्रतिशत तक की कटौती

क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन का कार्य करने वालीं मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग की भाषायी अकादमियों की उपेक्षा की जा रही है। पिछले चार वर्षों में विभाग ने पहले प्रदेशभर में आयोजित होने वाले अकादमियों के कार्यक्रमों की संख्या घटाई और इसी बहाने उनके बजट में भी कटौती कर दी।

नतीजन प्रदेशभर में विभिन्न आयोजनों व साहित्य के माध्यम से भाषाओं के उत्थान के लिए काम करने वाली अकादमियां राजधानी में दो कमरों में सिमटकर रह गई हैं। दरअसल कोरोनाकाल के दौरान विभाग ने आर्थिक अस्थिरता के चलते संस्कृति परिषद् के अंतर्गत संचालित अकादमियों के बजट में कमी की थी, परंतु साल दर साल यही सिलसिला चलता रहा। पिछले वित्तीय वर्ष के अनुसार पांच भाषायी अकादमियों के बजट में चार वर्षों में 50 प्रतिशत तक की कटौती कर दी गई है।

वित्तीय वर्ष 2023-24

  • मराठी साहित्य अकादमी:- 40 लाख रुपये
  • भोजपुरी साहित्य अकादमी:- 30 लाख रुपये
  • उर्दू अकादमी:- एक करोड़ रुपये (लगभग)
  • पंजाबी साहित्य अकादमी:- 35 लाख रुपये (लगभग)
  • सिंधी साहित्य अकादमी:- 40 लाख रुपये

वित्तीय वर्ष 2019-20 एक करोड़ रुपये 50 लाख रुपये डेढ़ लाख रुपये (लगभग) 60 लाख रुपये (लगभग) एक करोड़ आठ लाख रुपये

अकादमियों के अधिकारियों ने कहा इस बजट में साहित्य सृजन भी मुश्किल वर्षभर के कार्यक्रमों की जानकारी के लिए संस्कृति विभाग द्वारा कला पंचांग जारी किया जाता है। इसमें प्रदेशभर में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की सूची होती है। विभाग के कला पंचांग में चार वर्षों में भाषायी अकादमियों के कार्यक्रमों में भी कटौती की गई है।

इस पर संस्कृति संचालक एनपी नामदेव का तर्क है कि भाषायी अकादमियों का कार्य सिर्फ साहित्य सृजन का है न कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का। परंतु अकादमियों के जिम्मेदारों का कहना है कि इस बजट में तो साहित्य सृजन भी मुश्किल है, क्योंकि वेतन में ही अधिकतर रुपये खर्च हो जाते हैं।

भाषायी अकादमियों को कार्यक्रम या साहित्य सृजन संबंधि कार्यों के आधार पर बजट का आवंटन किया जाता है। पिछले वर्षों में अकादमियों का बजट कम हुआ है। परंतु इस वर्ष हम वापस बजट को बढ़ाने की दिशा में बढ़े हैं। जितना बजट पिछले वर्ष दिया गया था। कुछ अकादमियों को दो त्रैमासिक में उतना बजट आवंटित कर दिया गया है।

एनपी नामदेव, संचालक, संस्कृति संचालनालय मप्र

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