हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच में गुरुवार को लगातार दूसरे दिन बहुचर्चित नर्सिंग काॅलेज फर्जीवाड़ा मामले की सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी व न्यायमूर्ति अचल कुमार पालीवाल की विशेष युगलपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कुछ महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। और महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई की है।
By Surendra Dubey
Publish Date: Fri, 22 Nov 2024 07:39:33 AM (IST)
Updated Date: Fri, 22 Nov 2024 07:39:33 AM (IST)
HighLights
- मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय ही सत्र 2024-25 की संबद्धता प्रक्रिया पूरी करेगा।
- कोर्ट ने यह भी कहा- संशोधन अधिनियम के प्रविधान इस वर्ष लागू नहीं होंगे।
- सीबीआई जांच में जिन कालेजों में कमियां पाई गईं थीं, उनके नाम सार्वजनिक करें।
नईदुनिया, जबलपुर (MP High Court)। हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने साफ कर दिया कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय ही सत्र 2024-25 की संबद्धता प्रक्रिया पूरी करेगा। इसी तरह संशोधन अधिनियम के प्रविधान इस वर्ष लागू नहीं होंगे। इसी कड़ी में हाई कोर्ट ने मेडिकल यूनिवर्सिटी को सत्र 2019-20 व 2020-21 के विभिन्न नर्सिंग पाठ्यक्रमों की वार्षिक व सेमेस्टर परीक्षाओं के परिणाम घोषित करने की अनुमति दे दी।
जिन काॅलेजों में कमियां पाई गईं थीं, उनके नाम सार्वजनिक किए जाएं
एक अन्य निर्णय में कोर्ट ने कहा है कि सीबीआइ जांच में जिन काॅलेजों में कमियां पाई गईं थीं, उनके नाम सार्वजनिक किए जाएं। गुरुवार को नर्सिंग फर्जीवाड़े मामले में ला स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की जनहित याचिका के साथ सभी अन्य नर्सिंग मामलों की सुनवाई हुई।
मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक्ट के संशोधन को चुनौती
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आलोक वागरेचा ने पक्ष रखा। याचिकाकर्ता ने आवेदन पेशकर मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक्ट के संशोधन को चुनौती देते हुए दलील दी कि विश्वविद्यालय की स्थापना स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में व्यवस्थित, दक्षतापूर्ण, एकरूपतापूर्ण, गुणवत्तायुक्त शिक्षा, शोध सुनिश्चित करने के प्रयोजन से की गई थी।
संबद्धता का नियंत्रण क्षेत्रीय विश्वविद्यालय को सौंप दिया गया
सरकार द्वारा 2024 में एक्ट में संशोधन कर नर्सिंग एवं पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों की संबद्धता का नियंत्रण क्षेत्रीय विश्वविद्यालय को सौंप दिया गया। हालांकि हाई कोर्ट ने इस वर्ष मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय को संबद्धता पर निर्णय लेने की अनुमति दे दी।
हाई कोर्ट ने रजिस्ट्रार की नियुक्ति अवैध मानकर की निरस्त
वहीं दूसरे मामले में हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने डा.हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के रजिस्ट्रार डा. रंजन कुमार प्रधान की नियुक्ति को अवैध पाते हुए निरस्त कर दिया।
शर्तें पूरा नहीं कर रहे हैं इसलिए रजिस्ट्रार पद के योग्य नहीं हैं
कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि विज्ञापन में अनुभव से संबंधित जो शर्तें निर्धारित थीं, उन्हें डा. प्रधान पूरा नहीं करते हैं। लिहाजा, वे रजिस्ट्रार पद के योग्य नहीं हैं। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन की कार्रवाई को उचित ठहराया।
31 मई, 2024 को दिए गए निर्णय को चुनौती दी गई थी
एकलपीठ के आदेश को निरस्त करते हुए डा. प्रधान की नियुक्ति निरस्त कर दी। हाई कोर्ट का यह आदेश विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा दायर अपील पर आया, जिसमें एकलपीठ के 31 मई, 2024 को दिए गए निर्णय को चुनौती दी गई थी। उस आदेश में डा. प्रधान को रजिस्ट्रार पद पर बहाल करने का निर्देश दिया गया था। .वि.
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