Voyager 1 स्पेस में 15 अरब मील दूर मौजूद है। 16 अक्टूबर को इसका एक ट्रांसमीटर शटडाउन हो गया जिसके कारण कम्युनिकेशन में एक अस्थायी व्यवधान पैदा हो गया। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि यह शटडाउन स्पेसक्राफ्ट के फॉल्ट प्रोटेक्शन सिस्टम के कारण हुआ होगा। रिपोर्ट के अनुसार, यह सिस्टम अक्सर स्पेसक्राफ्ट में चल रहे कुछ अन्य सिस्टम को बंद कर देता है। जब स्पेसक्राफ्ट में बहुत ज्यादा पावर की खपत होने लगती है तो यह सिस्टम ऐसा करता है।
नासा के अनुसार Voyager 1 से एक मैसेज को धरती तक पहुंचने, या फिर धरती से Voyager 1 तक पहुंचने में 23 घंटे का समय लगता है। यानी भेजा गया मैसेज एकतरफा दूरी को लगभग 1 दिन में तय करता है। 16 अक्टूबर को इंजीनियरों ने स्पेसक्राफ्ट को एक कमांड भेजी, लेकिन 18 अक्टूबर तक भी उन्हें स्पेसक्राफ्ट की तरफ से कोई रेस्पॉन्स प्राप्त नहीं हुआ। फिर उसके एक दिन बाद स्पेसक्राफ्ट से संपर्क पूर्ण रूप से टूट गया। जांच के बाद पता चला कि Voyager 1 के फॉल्ट प्रोटेक्शन सिस्टम ने स्पेसक्राफ्ट को एक अन्य, कम पावर खपत वाले ट्रांसमीटर में स्विच कर दिया है।
Voyager 1 में दो रेडियो ट्रांसमीटर लगे हैं लेकिन यह काफी सालों से केवल एक ही को इस्तेमाल कर रहा है जिसे X-band ट्रांसमीटर कहा जाता है। वहीं दूसरा, S-band ट्रांसमीटर एक अन्य फ्रीक्वेंसी को इस्तेमाल करता है जिसे 1981 के बाद से इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिलहाल नासा ने X-band ट्रांसमीटर में दोबारा से स्विच करने का फैसला टाल दिया है।
एजेंसी का कहना है कि वह तब तक ऐसा नहीं करेगी जब तक कि पता न लग जाए कि स्पेसक्राफ्ट ने ट्रांसमीटर क्यों बदला। इस बीच वैज्ञानिकों ने 22 अक्टूबर को फिर से एक मैसेज स्पेसक्राफ्ट को भेजा जिसका जवाब उन्हें 24 अक्टूबर को मिला। इससे सुनिश्चित हो गया कि स्पेसक्राफ्ट S-band ट्रांसमीटर के साथ सही से काम कर रहा है। Voyager 1 ने जुपिटर प्लेनेट के चारों तरफ एक पतली रिंग की भी खोज की है। साथ ही इसके दो नए जोवियन चंद्रमाओं- Thebe और Metis का भी पता लगाया है।
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2024-11-02 07:41:41
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