मार्स रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर द्वारा कैमरा में कैद की गई ये तस्वीरें सिर्फ तस्वीरें मात्र नहीं हैं। ये बताती हैं कि मंगल ग्रह पर वायुमंडल और उसका प्रभाव कैसा हो सकता है। नासा की JPL ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि इनसाइट लैंडर के सौर पैनल महीन धूल की एक परत में ढके दिखाई देते हैं। यह वैसी ही रेत और धूल है जो कि पूरे ग्रह पर भी दिखाई देती है।
नवंबर 2018 से दिसंबर 2022 तक इनसाइट लैंडर ने मंगल पर यात्रा की। यह स्पेसक्राफ्ट अपने क्रियाकलाप के लिए सूर्य की रोशनी से पावर लेता था। लेकिन गुजरते समय के साथ इसके सौर पैनल्स पर धूल जमती चली गई जिससे कि इसकी पावर जेनरेट कैपिसिटी कम होती चली गई। होते होते एक दिन यह बिल्कुल ठप हो गया। अब इस पर धूल जमती जा रही है।
नासा के वैज्ञानिक इनसाइट लैंडर को अंतिम विदाई देना चाहते थे। साथ ही मकसद था कि अंतिम फोटो के माध्यम से पता चल सके कि गुजरते समय के साथ मंगल पर उड़ रही धूल वहां मौजूद चीजों के साथ कैसा बर्ताव करती है। इनसाइट लैंडर एजेंसी के उस पहले मिशन के रूप में कामयाब हुआ जिसने मंगल पर भूकंपों का पता लगाया। इसने ग्रह के भीतरी हिस्से के बारे में भी डेटा दिया जिसमें इसकी क्रस्ट, मेंटल और कोर के बारे में भी जानकारी शामिल थी। इनसाइट लैंडर ने मंगल पर चार साल तक सक्रिय रूप से काम किया।
मंगल ग्रह पर धूल को स्टडी करना बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। मंगल पर मौजूद धूल इसके पर्यावरण को तैयार करने में अहम भूमिका निभाती है। यहां पर धूल के तूफान आते हैं जो इसके मौसम के पैटर्न पर असर डालते हैं। इसके अलावा इनसाइट लैंडर पर जमी धूल बताती है कि इसके जमने के कारण उल्का पिंडों के गिरने से बने गड्ढे और स्पेसक्राफ्ट्स के मंगल पर उतरने के कदमों के निशान भी मिट सकते हैं। वैज्ञानिकों को इससे समझने में मदद मिलेगी कि धूल यहां पर कितनी तेजी से किसी वस्तु पर जमती है और अहम चिह्नों को कैसे ढक सकती है।
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2025-01-01 14:43:02
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