रिपोर्ट्स के अनुसार, अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) के संतोष वडावले और उनकी टीम ने पता लगाया है कि लैंडिंग साइट के आसपास चंद्रमा की मिट्टी की सबसे बाहरी परत जिसे रेगोलिथ कहा जाता है उसमें एक समान तात्विक (elemental) संरचना थी, जो मुख्य रूप से फेरोअन एनोर्थोसाइट चट्टान (ferroan anorthosite) की बनी थी।
वैज्ञानिकों की टीम ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक मैग्मा महासागर होने के सबूत भी खोजे हैं, जो पूर्व में वहां रहा होगा। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने कहा है कि चंद्रयान-3 के डेटा से मिले रिजल्ट ने चांद पर मैग्मा महासागर होने की कल्पना को कन्फर्म किया है।
इसका मतलब है कि चंद्रमा का मेंटल तब बना जब हैवी मेटल अंदर की तरफ डूबे और हल्की चट्टानें सतह पर तैरती रहीं, जिससे चांद की बाहरी सतह का निर्माण हुआ। यह स्टडी जर्नल नेचर में पब्लिश हुई है। प्रज्ञान रोवर के पेलोड पर लगे अल्फा पार्टिकुलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) से भेजे गए डेटा से यह जानकारी हासिल हुई है। APXS को PRL के वैज्ञानिकों ने ही तैयार किया था। इसे चांद की मिट्टी को परखने के लिए बनाया गया था।
जब बना, तब कैसा था चांद?
ऐसी परिकल्पना है कि चंद्रमा जब बना था, तब वह पूरी तरह से मैग्मा का महासागर था। जैसे-जैसे मैग्मा ठंडा हुआ, भारी मिनरल्स डूब गए जिससे चंद्रमा की अंदर की लेयर का निर्माण हुआ। भारी मिनरल्स में ओलिवाइन और पाइरोक्सिन शामिल थे। जबकि हल्के मिनरल जैसे प्लेगियोक्लेज वहां तैरने लगे, जिससे चांद की बाहरी परत बनी।
मैग्मा जमीन के नीचे पिघली हुई चट्टान होती है। उसमें कुछ ठोस चट्टानी टुकड़े और ज्वालामुखी गैस मिक्स हो सकती हैं।
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