मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को ओबीसी आरक्षण से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए यूथ फॉर इक्वालिटी संस्था की याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले के साथ ही होल्ड पर रखे गए पदों पर नियुक्तियों का रास्ता साफ हो गया है। अब 27 प्रतिशत पदों पर भर्ती होगी।
By Neeraj Pandey
Publish Date: Tue, 28 Jan 2025 04:32:35 PM (IST)
Updated Date: Tue, 28 Jan 2025 10:10:37 PM (IST)
HighLights
- मप्र हाईकोर्ट ने 27% ओबीसी आरक्षण से जुड़ी याचिका खारिज।
- होल्ड पर रखे गए 13 फीसदी पदों पर नियुक्तियों का रास्ता साफ।
- मामले के कारण 87% और 13% के फार्मूले हो रही थी भर्ती।
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर : हाई कोर्ट ने मंगलवार को उस जनहित याचिका को निरस्त कर दिया, जिसके माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य शासन के निर्णय को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने 2021 में दायर हुई इसी जनहित याचिका पर 2023 में महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश के जरिए 87:13 का फार्मूला अभिनिर्धारित किया था।
यहां 87 का आशय अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित कुल आरक्षण के 87 प्रतिशत है। जबकि 13 का आशय ओबीसी के लिए निर्धारित 27 में से 14 का लाभ दिए जाने के उपरांत शेष 13 प्रतिशत के परिप्रेक्ष्य में पद होल्ड किए जाने से था।
87 : 13 का फार्मूला निरस्त
हालांकि अब जबकि हाई कोर्ट ने 87 : 13 का फार्मूला देने वाली जनहित याचिका निरस्त हो चुकी है अत: न केवल 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का बल्कि भर्तियों में 13 प्रतिशत होल्ड पद अनहोल्ड करने का रास्ता भी साफ हो गया है। कुल मिलाकर ओबीसी आरक्षण को लेकर लंबे समय से चले आ रहे विवाद का भी पटाक्षेप हो गया है।
मध्य प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता द्वारा 26 अगस्त, 2021 को दिए गए अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने दो सितंबर, 2021 को एक परिपत्र जारी कर ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ दिए जाने की अनुमति प्रदान की थी।
इन पर अटकी भर्तियां
इस परिपत्र में तीन विषयों को छोड़ कर शेष में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया गया था। इनमें नीट पीजी प्रवेश परीक्षा 2019-20, पीएससी द्वारा मेडिकल आफिसर भर्ती-2020 और हाई स्कूल शिक्षक भर्ती के पांच विषय सम्मलित थे।
हाई कोर्ट ने चार अगस्त, 2023 को अंतरिम आदेश के तहत सामान्य प्रशासन विभाग के उक्त परिपत्र पर रोक लगा दी थी। इसका आशय यह था कि सभी नियुक्तियों में ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।
पीआइएल निरस्त अत: रोक स्वमेव समाप्त
हाई कोर्ट द्वारा यूथ फार इक्वालिटी की जनहित याचिका निरस्त किए जाने को लेकर विधिवेत्ताओं का कहना है कि चूंकि जिस जनहित याचिका में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर रोक लगा दी गई थी, अब जबकि वह निरस्त हो गई है, अत: रोक भी स्वमेव समाप्त हो गई है।
यह व्याख्या करने वालों में राज्यपाल द्वारा ओबीसी का पक्ष रखने अधिकृत किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह शामिल हैं।
परिपत्र के कारण आरक्षण का प्रतिशत 50 पार हुआ
जनहित याचिकाकर्ता सागर की यूथ फार इक्वालिटी संस्था की ओर से दलील दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी व मराठा रिजर्वेशन सहित अन्य न्यायदृष्टांतों में स्पष्ट व्यवस्था दी है कि है कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। लिहाजा, सामान्य प्रशासन विभाग के उक्त परिपत्र के कारण प्रदेश में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं मामले
उल्लेखनीय है कि आतिशी दुबे नामक याचिकाकर्ता ने मेडिकल से जुड़े मामले में ओबीसी आरक्षण को पहली बार चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने 19 मार्च, 2019 को ओबीसी के लिए बढ़े हुए 13 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई थी। इसी अंतरिम आदेश के अंतर्गत बाद में कई अन्य नियुक्तियों में भी रोक लगाई गई थी।
यह याचिका दो सिंतंबर, 2024 को हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित हो गई थी। इसके अलावा राज्य शासन ने ओबीसी आरक्षण से जुड़ी लगभग 70 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करा ली हैं, जिन पर अभी निर्णय नहीं आया है।
उन लाखों उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जिनकी भर्तियां कोर्ट के आदेश के चलते होल्ड पर थीं
ओबीसी के विशेष अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ने अवगत कराया कि यूथ फार इक्वलिटी द्वारा दायर जनहित याचिका में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह आरक्षण संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन करता है और समानता के अधिकार को प्रभावित करता है।
लेकिन हाई कोर्ट ने इस तर्क को दरकिनार करते हुए जनहित याचिका को निरस्त कर दिया। हाई कोर्ट ने मंगलवार के आदेश में चार अगस्त, 2023 के आदेश को निरस्त कर दिया और स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई बाधा नहीं है।
सभी भर्तियों को फिर से शुरु करने का रास्ता साफ
कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य में रुकी हुई सभी भर्तियों को फिर से शुरु करने का रास्ता साफ हो गया है। इस आदेश से उन लाखों उम्मीदवारों को राहत मिलेगी, जिनकी भर्तियां कोर्ट के आदेश के चलते होल्ड पर थीं।
चार अगस्त 2023 को हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के तहत राज्य सरकार को 87 : 13 का फार्मूला लागू करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद प्रदेश की सभी भर्तियां ठप हो गई थीं।
सरकार ने यह फार्मूला महाधिवक्ता के अभिमत के आधार पर तैयार किया था, जिसके तहत 87 प्रतिशत सीटें अनारक्षित और 13 प्रतिशत सीटें ओबीसी के लिए रखी गई थीं। इससे 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की मांग करने वाले उम्मीदवारों में आक्रोश था।
आरक्षण से संबंधित विवाद को होगा समाप्त
मप्र के तत्कालीन महाधिवक्ता के अभिमत के कारण चार अगस्त, 2023 को हाई कोर्ट ने समस्त भर्तियों में 87 : 13 का फार्मूला लागू किया था। हाई कोर्ट का यह आदेश राज्य में आरक्षण से संबंधित विवाद को समाप्त करने और भर्ती प्रक्रिया को सुचारू रूप से शुरु करने के लिए एक अहम कदम है।
इससे सरकार को आरक्षण नीति के तहत काम करने की स्पष्टता मिलेगी और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही प्रदेश में रुकी हुई सभी भर्तियों को अनहोल्ड करने का रास्ता साफ हो गया है।
सरकार अब ओबीसी आरक्षण के तहत 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करते हुए भर्तियों को तेजी से आगे बढ़ा सकती है। इससे ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों को बड़ा लाभ मिलेगा, जो लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे।
-रामेश्वर सिंह ठाकुर, ओबीसी के विशेष अधिवक्ता
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