मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. राजेश वर्मा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की है। कोर्ट ने राज्य शासन, मप्र लोक सेवा आयोग, उच्च शिक्षा विभाग और रादुवि के कुलगुरु प्रो. वर्मा को नोटिस जारी किए हैं।
By Prashant Pandey
Publish Date: Sun, 23 Mar 2025 12:05:43 PM (IST)
Updated Date: Sun, 23 Mar 2025 02:41:34 PM (IST)
HighLights
- कुलगुरु की नियुक्ति पर उठाए गए कानूनी सवाल।
- यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार नियुक्ति की जांच।
- कोर्ट ने सरकार और आयोग को जारी किया नोटिस।
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर (RDVV VC)। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. राजेश वर्मा की नियुक्ति को चुनौती के मामले में जवाब-तलब कर लिया है। इस सिलसिले में राज्य शासन, मप्र लोक सेवा आयोग, उच्च शिक्षा विभाग और रादुवि के कुलगुरु प्रो. वर्मा को नोटिस जारी किए गए हैं।
याचिका में कुलगुरु के पद के साथ-साथ प्रोफेसर के रूप में मूल नियुक्ति पर भी सवाल खड़ा किया गया है। कोर्ट ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई में टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता ने विशुद्ध रूप से कानूनी मुद्दा उठाया है।
नियम विरुद्ध पद पर नियुक्ति का आरोप
दरअसल, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन जबलपुर के जिला अध्यक्ष सचिन रजक और अभिषेक तिवारी ने याचिका दायर कर आरोप लगाया है कि प्रो. वर्मा की नियम विरुद्ध तरीके से प्रोफेसर के पद नियुक्ति हुई थी। यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार प्राफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए पीएचडी डिग्री मिलने के बाद 10 वर्ष के अध्यापन का अनुभव आवश्यक है।
नवंबर 2008 में दी गई थी पीएचडी
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष अग्रवाल ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि प्रो. वर्मा को पीएचडी 25 नवंबर, 2008 को प्रदान की गई थी। इसके बाद 19 जनवरी, 2009 को एमपीपीएससी ने प्राध्यापक पद पर नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया था। इस पद के लिए पीएचडी डिग्री मिलने के बाद 10 वर्ष पढ़ाने का अनुभव जरूरी था।
आवेदन करने वालों के पास यह अनुभव विज्ञापन की अंतिम तारीख, यानी 20 फरवरी, 2009 तक होनी चाहिए थी। कुलगुरु की प्रथम नियुक्ति जो कि प्रोफेसर के पद पर हुई है, वह नियम के विरुद्ध है।
10 साल टीचिंग का अनुभव नहीं है
पूर्व में संगीता बारूकर के केस में एमपीपीएससी ने शपथ पत्र में कहा था कि प्रोफेसर में नियुक्ति के लिए पीएचडी के बाद कम से कम 10 वर्ष टीचिंग का अनुभव होना चाहिए, जो कि डॉ. राजेश वर्मा के केस में नहीं है। जब मूल नियुक्ति नियम विरुद्ध है तो कुलगुरु के पद पर नियुक्ति वैधानिक कैसे मानी जा सकती है।
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