इंदौर के वैज्ञानिक ने तीन छड़ियां संगिनी, सहारा और स्पंदिनी बनाई हैं। यह तीनों छड़ियां दृष्टिबाधितों, बुजुर्गों और दिव्यांगों को ध्यान में रखकर बनाई गई है। इन छड़ियों को कुछ संस्थाओं को उपयोग के लिए दिया गया है। दिव्यांग और बुजुर्ग इसका उपयोग कर रहे हैं।
By Prashant Pandey
Publish Date: Wed, 06 Nov 2024 12:36:56 PM (IST)
Updated Date: Wed, 06 Nov 2024 12:45:44 PM (IST)
HighLights
- संगिनी छड़ी में हाथ फ्रीज होते ही बजता है अलार्म।
- सहारा छड़ी ठोकर के साथ टक्कर से भी बचाती है।
- स्पंदिनी में माइक्रो कंट्रोलर बेस्ड सोनार सेंसर है।
भरत मानधन्या, नईदुनिया इंदौर (Special Sticks for Divyangjan)। दिव्यांगों, बुजुर्गों और दृष्टिबाधितों की राह सुगम करने के लिए इंदौर के पूर्व विज्ञानी ने तीन प्रकार की छड़ियां तैयार की हैं। ये मदद करने के साथ बाधाओं से भी बचाती हैं। आपात स्थिति में सुरक्षा भी देती हैं। ये रिचार्जेबल हैं। इनका वजन 300 ग्राम तक है।
राजा रमन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र इंदौर के पूर्व विज्ञानी संजय खेर व उनकी टीम ने इनको तैयार करने के बाद प्रयोग के लिए कुछ संस्थानों को सौंपा है। परिणाम बेहतर मिले हैं। इनमें कैमरा भी इंस्टाल किया जाएगा।
संगिनी : हाथ फ्रीज होते ही बजेगा अलार्म
कई बार चलने के दौरान बुजुर्गों के हाथ फ्रीज या कठोर हो जाते हैं, लेकिन उन्हें इसका अहसास नहीं होता। इस समस्या से निपटने को संगिनी नाम की छड़ी तैयार की गई है। फ्रीज डिटेक्शन सिस्टम से युक्त इस छड़ी में टाइमर लगाया गया है। छड़ी में लेजर लाइट, एक टार्च और एक पैनिक बटन भी है।
सहारा : ठोकर के साथ टक्कर से भी बचाएगी
दूसरी छड़ी का नाम सहारा है। सोनार सेंसर से युक्त ये छड़ी दृष्टिबाधित को टक्कर और ठोकर से बचाएगी। यह सामने आनी वाली बाधाओं को भांप लेती है।
स्पंदिनी : साउंड नेविगेशन बताता है राह
तीसरी छड़ी का नाम स्पंदिनी है। यह माइक्रो कंट्रोलर बेस्ड सोनार सेंसर से लैस है।
किशोरों को विज्ञान से जोड़ने का अनूठा प्रयास भी
विशेष छड़ियां विकसित करने वाले पूर्व विज्ञानी संजय खेर बताते हैं कि इनके निर्माण में ऐसे किशोरों को भी शामिल किया गया है, जो दिव्यांग हैं या फिर जिनके माता-पिता नहीं है और वे आश्रम आदि में रहकर पढाई कर रहे हैं।
इसका उदेश्य यह है कि उन्हें विज्ञान से जोड़कर कार्य और विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की जाए ताकि वे अच्छे भविष्य के लिए कदम बढ़ा सकें। उज्जैन के सेवाधाम आश्रम में रहने वाले ऐसे 10 किशोरों को हमारी टीम ने छड़ी बनाने का प्रशिक्षण दिया था। थोड़े समय में ये किशोर इस कार्य में दक्ष हो गए।
छड़ियां प्रयोग के लिए कुछ संस्थानों को दी गई
कई बुजुर्गों और दिव्यांगों को चलने के दौरान आने वाली समस्याओं से जूझते देखा तो इनको दूर करने के लिए कोई वैज्ञानिक उपकरण तैयार करने का विचार आया। इसी के परिणाम स्वरूप ऐसी छड़ियां बनाईं। इलेक्ट्रानिक डिवाइस बनाने के साथियों के साथ लगातार प्रयोग किए और उनमें सुधार करते चले गए। अब ये छड़ियां प्रयोग के लिए कुछ संस्थानों को दी गई हैं, जहां दृष्टिहीन और बुजुर्ग इनका उपयोग कर रहे हैं। संजय खेर, पूर्व विज्ञानी, राजा रमन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र, इंदौर
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