इंदौर ने वेटलैंड सिटी का दर्जा हासिल कर लिया है। यह उपलब्धि नौ में से चार मापदंडों को पूरा करने के बाद मिली है। सिरपुर तालाब को सहेजने के लिए विगत 13 वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं। अब यशवंत सागर के भी संरक्षण की योजना बनाई गई है।
By Prashant Pandey
Publish Date: Mon, 27 Jan 2025 09:37:16 AM (IST)
Updated Date: Mon, 27 Jan 2025 09:53:43 AM (IST)
HighLights
- सिरपुर तालाब के चार मापदंडों ने दिलाया वेटलैंड सिटी का दर्जा।
- इंदौर में होलकरकालीन सिरपुर तालाब करीब 130 साल पुराना है।
- शहर के पास इस तालाब में 55 प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं।
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। तालाबों व जलाशयों को सहेजने व संरक्षण के साथ ‘वेटलैंड सिटी’ के तय नौ में से चार मापदंड पूरा करने पर इंदौर को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली है। गौरतलब है कि इंदौर में सिरपुर तालाब को सहेजने के लिए विगत 13 वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं। अब यशवंत सागर के भी संरक्षण की योजना बनाई गई है।
इंदौर के इन दोनों तालाबों को जनवरी 2022 में रामसर साइट का दर्जा मिला था। इसके बाद नगर निगम ने दोनों तालाबों के संरक्षण के लिए किए कार्यों के आधार पर ‘वेटलैंड सिटी’ का एक्रीडिएशन पाने के लिए सितंबर 2023 में प्रयास शुरू किए। इसके परिणाम स्वरूप ही इंदौर को करीब डेढ़ साल बाद वेटलैंड सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ।
तालाब के विकास के लिए केंद्र सरकार को भेजी गई है योजना
सिरपुर तालाब के विकास के लिए नगर निगम द्वारा दो माह पहले 62 करोड़ रुपये की योजना केंद्र सरकार को भेजी गई है। वहीं यशवंत सागर के विकास के लिए योजना तैयार की जा रही है। वहां किए जाने वाले कार्यों का आकलन कर राज्य सरकार से केंद्र को योजना भेजने की तैयारी है।
डेढ़ साल पहले शुरू हुआ था प्रयास
इंदौर निगम ने वेटलैंड सिटी का दर्जा पाने के लिए लगभग डेढ़ साल पहले प्रयास करना शुरू कर दिया था। अगस्त 2023 में ‘वेटलैंड सिटी एक्रीडिएशन’ के अंतर्गत तालाबों से जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक किया गया। नेतृत्व कलेक्टर और महापौर ने किया। वेटलैंड सिटी एक्रीडिएशन का आकलन रामसर सम्मेलन के मानकों के आधार पर किया गया।
तालाबों की सफाई और पानी को स्वच्छ बनाने के लिए निरंतर प्रयास किए गए। वेटलैंड 2017 के तहत सभी नियमों का पालन किया गया। वहीं तालाब में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं की जानकारी जुटाई गई। मछलियों, मेंढकों, सांपों और केंचुओं की विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन किया गया।
सिरपुर तालाब के इन चार मापदंडों ने दिलाया दर्जा
होलकरकालीन सिरपुर तालाब 130 साल पुराना है। यह शहरी तालाब है। यहां 200 प्रकार की प्रजातियों के पक्षी हैं। इनमें 55 प्रकार के प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। यह 800 एकड़ में फैला है। यहां वर्षभर पर पानी रहता है। इस तालाब के पानी का उपयोग शहर में पेयजल व अन्य कार्यों के लिए नहीं किया जाता है।
- 1. यहां यूरेशियन विगन, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, ग्रेटर फ्लेमिंगो, पेंटेड स्टार्क व सुराख पक्षी आते हैं।
- 2. यहां विविध प्रजाति के पौधे, तालाब में जैव विविधता है।
- 3. सिरपुर तालाब क्षेत्र ऐसा पारिस्थितिक तंत्र है जहां तालाब के बैकवाटर, सुखनिवास आवक चैनल क्षेत्र में पक्षियों के प्रजनन, निवास बनाने के लिए अनुकूल वातावरण है।
- 4. तालाब में जलीय जीव जैसे मछली, केकड़ा, झींगा की उपलब्धता है।
इंदौर ने दुनिया में बनाई अपनी पहचान
वर्ल्ड वेटलैंड डे के अवसर पर इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र की सचिव आई थी। इंदौर को वेटलैंड सिटी का दर्जा दिलाने के लिए एमआइसी में प्रस्ताव पारित किया गया। औपचारिक रूप से आवेदन दिया गया और इंदौर को यूनेस्को से वेटलैंड सिटी के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। इस उपलब्धि के माध्यम से इंदौर ने विश्व मानचित्र पर अपनी अलग पहचान बनाई है। तालाब और सरोवर संरक्षण का संदेश अब विश्वभर में पहुंच रहा है। यह मान्यता अंतरराष्ट्रीय बर्ड वाचर्स, ईको पर्यटकों और पर्यावरण प्रेमियों को इंदौर की ओर आकर्षित करेगी। – पुष्यमित्र भार्गव, महापौर
200 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी आते हैं
इंदौर पहले ही जल संग्रहण के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुका है। वेटलैंड सिटी का दर्जा मिलना इंदौर के लिए गौरव का क्षण है। वेटलैंड सिटी का दर्जा मिलने के बाद तालाबों का संरक्षण जरूरी हो चुका है। सिरपुर तालाब में हर साल 200 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी आते हैं। 100 से ज्यादा प्रजातियों की तितली हैं। जीव-जंतुओं की सूची बनाई जाएगी। तालाब के पानी को प्राकृतिक रूप से स्वच्छ करना है। कई बिंदुओं पर रिपोर्ट बनाई जाएगी। उसके बाद तालाबों को संरक्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से अनुदान मिलेगा। – भालू मोंढे, पर्यावरणविद
दर्जा बरकरार रखना बहुत जरूरी
वेटलैंड सिटी का दर्जा बरकरार रखना बहुत जरूरी है। इन स्थानों को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं करना चाहिए। यहां प्राकृतिक छेड़छाड़ करने से बचाना होगा। – रवि गुप्ता, पर्यावरणविद
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