4 मिनट पहले
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साल 1947 की बात है
21 साल की ब्रिटिश एक्ट्रेस गे गिब्सन अटलांटिक महासागर में केप टाउन से यूनाइटेड किंगडम के लिए जहाज से रवाना हुईं। फर्स्ट क्लास में सफर कर रहीं गे गिब्सन को रूम नंबर 126 दिया गया था। हालांकि 18 अक्टूबर 1947 को सफाई करने पहुंची एक स्टाफ क्लीनर ने देखा कि वो अपने कमरें में नहीं हैं। उनके कमरे की चादर में दाग था और उनका सामान भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। नजरें घुमाने पर पता चला कि उनके कमरे की पोर्टहोल (जहाज की खिड़की) खुली थी। पूरे जहाज में गे गिब्सन की तलाश की गई, लेकिन वो लापता थीं।
एक रात पहले वो अपने साथी पैसेंजर्स के साथ डांस करती और मस्ती करती दिखी थीं। देर रात उन्होंने कैप्टन को मदद के लिए बुलाया था, लेकिन उसके बाद उन्हें किसी ने नहीं देखा।
उनकी तलाश कभी पूरी नहीं हुई, लेकिन जहाज के कैप्टन के बयान पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। न उनकी कभी लाश मिली, न उनकी मौत की गुत्थी सुलझ चुकी। दुनिया के इंग्लिश लॉ के मुताबिक ये ऐसा पहला मामला है, जिसमें बिना लाश मिले ही कातिल को सजा-ए-मौत सुनाई गई थी।
लेकिन कातिल की खुशकिस्मती ऐसी कि फांसी दिए जाने से पहले ही मृत्युदंड की सजा में बदलाव कर दिया गया। मामला इतना विवादों में रहा कि तत्कालीन ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर ने भी गे गिब्सन के हत्यारे को फांसी न दिए जाने पर खेद जताया था।
ये हत्याकांड दुनियाभर में पोर्थोल मर्डर के नाम से मशहूर है, हालांकि न कभी गे गिब्सन की लाश मिली, न उनकी मौत का कारण कभी सामने आ सका।
आज अनसुनी दास्तान के 3 चैप्टर्स में पढ़िए जयपुर में जन्मीं ब्रिटिश एक्ट्रेस गे गिब्सन की हत्या की कहानी, जो 77 साल बाद भी अनसुलझी है।
अगले शो के लिए साउथ अफ्रीका से लंदन की जहाज यात्रा पर निकली थीं
16 जून 1926 को गे गिब्सन का जन्म ब्रिटिश इंडिया के जयपुर शहर में हुआ था। गुलाम भारत में ये वो दौर था, जब कई अंग्रेज भारत में आकर बसे थे। गे गिब्सन का असली नाम एलीन ईसाबेल रोनी गिब्सन था, जो फिल्मों में आने के बाद बदला गया था।
साउथ अफ्रीका में हुए गे गिब्सन के प्ले गोल्डन बॉय की तस्वीर, जिसमें वो एक्टर एरिक बून के साथ नजर आई थीं।
अक्टूबर 1947 में 21 साल की गे गिब्सन थिएटर टूर के लिए पॉपुलर एक्ट्रेस डोरीन मांटेल के साथ लंदन से साउथ अफ्रीका गई हुई थीं। उनका अगला स्टेज शो लंदन के वेस्ट एंड थिएटर में होने वाला था। साउथ अफ्रीका के कामयाब शो के बाद वो यूनियन कैसल लाइन के जहाज MV Durban Castle से लंदन रवाना हुई थीं। 10 अक्टूबर को यात्रा शुरू करने वाला ये जहाज केपटाउन, साउथ अफ्रीका, साउथैंप्टन, इंग्लैंड से होते हुए यूनाइटेड किंगडम पहुंचने वाला था।
जहाज MV Durban Castle ने 10 अक्टूबर 1947 को यात्रा शुरू की थी।
गे गिब्सन जहाज की फर्स्ट क्लास पैसेंजर थीं, जिन्हें बी-डेक का केबिन नंबर 126 दिया गया था। देखने में बेहद खूबसूरत गे गिब्सन जहाज में ज्यादातर समय फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स के साथ बिताती थीं। करीब एक हफ्ते जहाज में बिताते हुए गे गिब्सन की सभी से अच्छी जान-पहचान हो चुकी थी। 17 अक्टूबर की रात को उन्होंने सभी पैसेंजर्स के साथ डिनर किया और सभी ने डांस करते हुए खूब एंजॉय किया। रात करीब 11 बजकर 30 मिनट पर उनके कुछ दोस्त उन्हें केबिन नंबर 126 तक छोड़कर आए थे।
सफाई कर्मचारी ने दी गुमशुदगी की जानकारी
अगली सुबह 18 अक्टूबर को फीमेल सफाई कर्मचारी एलीन फील्ड केबिन नंबर 126 में सफाई करने पहुंची थीं। दरवाजा खुला हुआ था, तो वो केबिन में दाखिल हो गईं। उन्होंने देखा कि कमरे में कोई सामान नहीं था, वहीं बिस्तर पर दाग लगा हुआ था। वहीं जहाज का पोर्टहोल (खिड़की) खुला था। हालात संदिग्ध लगने पर एलीन ने तुरंत ड्यूटी ऑफिसर इन कमांड पैटे से संपर्क कर उन्हें इसकी जानकारी दी। जहाज में गे गिब्सन की तलाश की गई, लेकिन जब उनकी कोई जानकारी नहीं मिली तो ऑफिसर पैटे ने गे गिब्सन की तलाश के लिए जांच शुरू की।
सबसे पहले मामले की पूछताछ शिप के ड्यूटी स्टीवर्ड जेम्स कैंब से शुरू हुई। दरअसल, सफर के दौरान जेम्स लगातार गे गिब्सन से नजदीकियां बढ़ा रहे थे। जहाज के स्टाफ को पैसेंजर से ज्यादा बातचीत करने की इजाजत नहीं थी, जिसके चलते जेम्स को उनके सीनियर्स से फटकार भी पड़ी थी। हालांकि, इसके बावजूद वो अक्सर गे गिब्सन के साथ ही नजर आते थे।
जेम्स कैंब दरबन कैसल जहाज के स्टीवर्ड थे, जिनकी उम्र 1947 में 30 साल थी।
जब जेम्स से गे गिब्सन की गुमशुदगी पर पूछताछ हुई तो उन्होंने इस घटना से कोई लेना-देना होने से साफ इनकार कर दिया। हालांकि, इसी जहाज में उस रात पहरेदारी कर रहे चौकीदार फ्रेडरिक स्टीयर के बयान से जेम्स शक के दायरे में आ गए।
आधी रात 3 बजे गे गिब्सन के केबिन में मदद के लिए बुलाया गया था
चौकीदार फ्रेडरिक स्टीयर ने ऑफिसर्स को बताया कि 17-18 अक्टूबर की दरमियानी रात को वो ड्यूटी पर था। करीब 3 बजे थे जब उसने देखा कि गे गिब्सन के केबिन नंबर 126 के बाहर दो लाइट्स (लाल और हरी) ऑन थीं। ये लाइट्स फर्स्ट क्लास पैसेंजर्स की सहूलियत के लिए लगी हुई थीं। अगर कोई पैसेंजर लाल लाइट का बटन प्रेस करता था तो ड्यूटी स्टीवर्ड उसे अटेंड करने आता था, वहीं दूसरी हरी लाइट का मतलब होता है कि ड्यूटी होस्टेट को भी बुलाया गया है।
उस रात गे गिब्सन के कमरे की दोनों लाइट्स ऑन थीं, जो काफी अटपटा था। आमतौर पर पैसेंजर्स की एक ही लाइट जलती थी। ड्यूटी पर मौजूद फ्रेडरिक मामला अजीब लगने पर गे गिब्सन की मदद करने पहुंचे। जब उन्होंने दरवाजा खटखटाया तो जेम्स ने दरवाजा खोला। उन्होंने आधा ही दरवाजा खोला और कहा कि सब ठीक है।
चौकीदार फ्रेडरिक को लगा कि जेम्स ड्यूटी पर हैं और पैसेंजर को अटेंड करने आए हैं। तसल्ली मिलने पर फ्रेडरिक वहां से निकल गए और अगली सुबह गे गिब्सन गुमशुदा हो गईं।
जेम्स से कहा गया कि आखिरी बार उसे ही गे गिब्सन के साथ देखा गया था, जिसे चौकीदार फ्रेडरिक के बयान से कन्फर्म किया गया। ये सुनकर उसने इकबाल-ए-जुर्म की ऐसी कहानी सुनाई, जिस पर न तो ऑफिसर्स को यकीन हुआ, न डॉक्टर्स को।
जहाज के स्टाफ का कबूलनामा, कहा संबंध बनाने के दौरान हुई गे गिब्सन की मौत
जेम्स कैंब ने ऑफिसर्स से कहा कि उन दोनों में गहरी दोस्ती हो चुकी थी। उस रात दोनों ने सहमति से एक-दूसरे के साथ संबंध बनाए थे, लेकिन संबंध बनाते हुए ही अचानक गे गिब्सन की मौत हो गई। उन्हें लगा कि उनकी इस बात का कोई यकीन नहीं करेगा, इसलिए नौकरी जाने के डर और सजा से बचने के लिए उन्होंने गिब्सन की लाश को पोर्टहोल (खिड़की) से बाहर फेंक दिया।
जेम्स के बयान पर यकीन करना मुश्किल था, क्योंकि इस तरह की किसी बीमारी का जिक्र कहीं नहीं था। इस समय तक जहाज डरबन कैसल अफ्रीका के पश्चिमी तट (गिनी बिसाऊ) से 140 किलोमीटर दूर था। ऑफिसर पैटे ने तुरंत जहाज को घुमाकर गे गिब्सन की लाश ढूंढने के आदेश दिए। उन्होंने घटना की जानकारी लंदन यूनियन कैसल लाइन को दी और साउथैंप्टन में पुलिस अधिकारियों को भेजे जाने की मांग की।
गे गिब्सन के कमरे को सील कर दिया गया। तट पर पहुंचते ही साउथैंप्टन पुलिस ने ब्रिटिश पुलिस के साथ मिलकर मामले की जांच शुरू की। उन्होंने जेम्स कैब को हिरासत में लिया और गे गिब्सन के कमरे की फोरेंसिक जांच शुरू कर दी।
गे गिब्सन के केबिन नंबर 126 और पोर्टहोल की रेप्लिका।
जांच में चादर पर पाए गए पेशाब के निशान
फोरेंसिक रिपोर्ट में पैथोलॉजिस्ट डेनिस हॉकलिंग ने खुलासा किया कि केबिन नंबर 126 की चादर में पेशाब के दाग थे। जांच में इस बात पर गौर किया गया कि मौत के समय पेशाब होना सिर्फ तब ही मुमकिन है, जब गला घोंटा जाए। हालांकि, रिपोर्ट बनाने वाले डेनिस ने कहा कि कुछ केसेस में ऐसा नेचुरल कारणों से भी हो सकता है।
मामले की सुनवाई के दौरान जेम्स कैंब ने हत्या की बात कबूली, लेकिन 4 बार बयान बदलकर भी वो इस बात पर अड़ा रहा कि जहाज से फेंके जाने से पहले गे गिब्सन की मौत हो चुकी थी। आखिरकार 22 मार्च 1948 को जेम्स कैंब को गे गिब्सन की हत्या करने के जुर्म में सजा-ए-मौत सुनाई गई।
डरबन कैसल जहाज का ब्लूप्रिंट।
ये अपनी तरह का चुनिंदा मामला था, जिसमें बिना लाश मिले किसी को दोषी माना गया। कुछ हिस्टोरियन कहते हैं कि ये इंग्लिश लॉ का पहला ऐसा मामला था।
सजा सुनाए जाने के बावजूद नहीं दी गई फांसी की सजाइसे जेम्स कैंब की खुशकिस्मती कहना गलत नहीं होगा कि जिस समय उसे फांसी की सजा सुनाई गई, उस समय संसद में मृत्युदंड पर विचार चल रहा था और गृह सचिव ने मामले की चर्चा के समय सभी पेंडिंग मृत्युदंड के मामलों में माफी दिए जाने का फैसला किया था।
तत्कालीन ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर ने कहा था- न्याय नहीं हुआ
जेम्स कैंब को दी गई मौत की सजा पर रोक लगने के बाद तत्कालीन ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर विंस्टन चर्चिल ने अपने एक भाषण में कहा था, हॉउस ऑफ कॉमन्स ने अपने वोटों से क्रूर और कामुक हत्यारे की जिंदगी बचाई, जिसने एक गरीब लड़की को जहाज के एक पोर्टहोल (खिड़की) से शार्क के सामने फेंक दिया, जिसका उसने बालात्कार किया था।
निधन के समय गे गिब्सन महज 21 साल की थीं।
इस मामले में जेम्स कैंब को 1959 में रिहा कर दिया गया। हालांकि, इसके बावजूद कुछ लड़कियों ने उन पर अभद्र हमला करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। इस मामले में जेम्स को दोबारा जेल हो गई। इस मामले में भी उन्हें 1978 में रिहा कर दिया गया। रिहाई मिलने के ठीक एक साल बाद जुलाई 1979 में जेम्स कैंब की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
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2025-01-03 23:44:01
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