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एमपी में लाखों कर्मचारियों को हर माह 1500 से 2500 तक का नुकसान, अफसरों के खिलाफ लामबंद हुए संगठन | Employees in MP lose Rs 1500 to 2500 every month

इंदौर में श्रमायुक्त कार्यालय के सामने धरना देते हुए आउटसोर्स और अस्थाई कर्मचारियों व संगठनों ने बताया कि मार्च 2024 में संशोधित वेतन के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया था। 1 अप्रेल से इसे लागू होना था लेकिन बाद में उद्योग संगठन हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी यह मामला अभी तक नहीं सुलझाया गया। इससे अलग अलग श्रेणी के कर्मचारियों को 15 सौ रुपए से 25 सौ रुपए तक का हर माह नुकसान हो रहा है।

कर्मचारी संगठनों ने नवंबर 2019 में न्यूनतम वेतन सलाहकार बोर्ड की अनुशंसा के अनुसार न्यूनतम वेतन दिए जाने की मांग की। इसके लिए सभी वैधानिक दिक्कतों को दूर करने की भी मांग की गई।

आउटसोर्स कर्मचारी नेता वासुदेव शर्मा ने बताया कि 2014 में न्यूनतम मजदूरी दरें तय की गई थीं। 2019 में दरें बढ़ाई जानी थीं लेकिन कंपनी के मालिकों, संचालकों के दबाव में सरकारी अफसरों ने दरों में वृद्धि नहीं की। मजदूरी बढ़ाने की हमारी लगातार मांग के बाद आखिरकार दस साल बाद सरकार ने 1 अप्रैल 2024 से अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल और उच्च कुशल श्रेणी के मजदूरों की दरों में वृद्धि कर दी।

यह भी पढ़ें: एमपी के युवा अफसर की हार्ट अटैक से मौत, आइपीएस के बेटे थे सैयद बरकत हैदर इस आदेश के बाद मई में प्रदेशभर के लाखों आउटसोर्स, अस्थाई मजदूरों को बढ़ी हुई राशि मिली लेकिन श्रम विभाग की अधिसूचना के विरोध में औद्योगिक संगठनों ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया। कर्मचारी नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकारी अफसरों ने हाईकोर्ट से स्टे हटवाने के लिए गंभीर कोशिश नहीं की। इतना ही नहीं, इस स्टे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका नहीं लगाई।

कर्मचारी संगठनों के मुताबिक इससे प्रदेश के लाखों आउटसोर्स-अस्थाई कर्मचारियों को हर माह 2 से 3 हजार रुपए तक का नुकसान हो रहा है। श्रम आयुक्त ने 2014 की दरों से भुगतान करने का आदेश जारी कर कर्मचारियों के हितों पर कुठाराघात किया है।

धरना देते हुए ऑल डिपार्टमेंट आउटसोर्स, अस्थाई कर्मचारी मोर्चा ने सरकार से तुरंत कोर्ट से स्टे हटवाने और बढ़ी हुई दरें देने के निर्देश जारी करने की मांग की। इसके साथ ही न्यूनतम वेतन से वंचित कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन के दायरे में लाने की भी मांग की गई है।

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