नई दिल्ली41 मिनट पहले
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नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवन की मुलाकात हुई।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते में आ रही परेशानियों को दूर करने की बात कही है। उन्होंने कहा कि इसके लिए अमेरिकी सरकार जरूरी कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि अमेरिका लंबे समय से उन रुकावटों को हटाने में लगा हुआ है।
सुलिवन ने कहा-
लगभग 20 साल पहले पूर्व राष्ट्रपति बुश और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु समझौते की एक दूरदर्शी सोच की नींव रखी थी, जिसे हमें अब पूरी तरह हकीकत बनाना है।
सुलिवन भारत दौरे पर आए हुए हैं। उन्होंने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से भी मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया।
अमेरिका NSA जैक सुलिवान ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से आज दिल्ली में मुलाकात की।
AI तकनीक की मदद ले रहे हैं- जैक सुलिवान
सुलिवन ने कहा कि दोनों देश प्रदूषण रहित ऊर्जा तकनीक पर काम कर रहे हैं। इसके लिए दोनों देश AI पर खासा जोर दे रहे हैं ताकि भारत-अमेरिका की एनर्जी कंपनियों को उनकी नई तकनीक के विस्तार में मदद कर सकें। उन्होंने कहा कि असैन्य परमाणु सहयोग के लिए अमेरिका निजी संस्थानों, वैज्ञानिकों और तकनीक के जानकारों की मदद ले रहा है।
सुलिवान ने भारतीय एनएसए अजित डोभाल से मुलाकात के बाद उनकी तारीफ की। उन्होंने कहा अजित का वीजन था कि भविष्य की एडवांस टेकनोलॉजी अमेरिका-भारत संबंधों को मजबूत बनाएंगी। बीते चार साल से हम दोनों ने इस पर मिलकर काम किया है।
सुलिवन ने कहा कि चार सालों में भारत-अमेरिका ने मिलकर कोरोना वैक्सीन बनाई। जिससे करोड़ों लोगों की जान बची। इसके साथ हमने मिलकर जेट इंजन, सेमीकंडक्टर और स्वच्छ ऊर्जा पर पहल शुरू की है।
मनमोहन सरकार में हुआ था ऐतिहासिक समझौता जुलाई 2005 में मनमोहन सिंह ने अमेरिका का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को एक परमाणु करार पर सहमत कराया। हालांकि इसके लिए अमेरिका ने भारत से 2 शर्तें रखी थीं। पहली- भारत अपनी सैन्य और नागरिक परमाणु गतिविधियों को अलग-अलग रखेगा। दूसरी- परमाणु तकनीक और सामग्री दिए जाने के बाद भारत के परमाणु केंद्रों की निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) करेगा।
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश।
भारत दोनों शर्तों से सहमत हो गया। इसके बाद मार्च 2006 में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत दौरे पर आए। इसी दौरे में भारत और अमेरिका के बीच ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। हालांकि विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध कर दिया था। लेफ्ट पार्टियों का कहना था कि इस समझौते का भारत की विदेश नीति पर असर पड़ेगा।
लेफ्ट पार्टियों के समर्थन वापस लेने के बाद मनमोहन सिंह ने संसद में बहुमत साबित किया। इसके बाद 8 अक्टूबर 2008 को अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने इस समझौते पर दस्तखत कर आखिरी औपचारिकता पूरी कर दी।
हालांकि इस डील के दौरान जो नए रिएक्टर लगाने को लेकर समझौते हुए थे, अब तक नहीं लग पाए हैं। हालांकि, इस डील का भारत को फायदा ये हुआ कि उसने लिए दुनियाभर का परमाणु बाजार खुल गया।
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