यह मशीन, परमाणु संलयन की ताकत का इस्तेमाल करने की कोशिश करती है। इसे कृत्रिम सूर्य इसलिए कहा जाता है, क्योंकि मशीन का सेटअप सूर्य के अंदर असलियत में होने वाले परमाणु रिएक्शंस की नकल करता है। इसमें हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम (deuterium) जैसी गैसों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ये प्रयोग वैज्ञानिकों को ‘असीमित क्लीन एनर्जी’ के करीब ला सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि EAST के जरिए मिलने वाली ऊर्जा को भविष्य में कमर्शल यूज में लाने की उम्मीद है। हालांकि इस प्रयोग को अभी और ऊंचाइयां प्राप्त करनी हैं। ऐसे पॉइंट तक पहुंचना है, जिसमें परमाणु संलयन अपनी ऊर्जा लंबे वक्त तक बनाए रखता है।
चीनी वैज्ञानिक साल 2006 से यह प्रयोग कर रहे हैं। रिएक्टर ने अबतक सैकड़ों टेस्ट किए हैं। इसके साथ ही चीन ने नई जेनरेशन की फ्यूजन रिसर्च फैसिलिटी का निर्माण शुरू कर दिया है। वैज्ञानिक, परमाणु संलयन को ऊर्जा का क्लीन सोर्स मानते हैं। इसी से हमारे सूर्य को भी ऊर्जा मिलती है। इससे उलट, न्यूक्लियर पावर प्लांट्स में परमाणु नाभिकों को मिलाकर ऊर्जा बनाई जाती है।
चीनी वैज्ञानिक जिस ऊर्जा पर काम कर रहे हैं वह कोई ग्रीन हाउस गैस पैदा नहीं करती। उससे किसी तरह का खतरा नहीं है। ऐसी ऊर्जा अगर इंसानी इस्तेमाल में काम आ सके, तो दुनिया के तमाम देशों को फायदा हो सकता है।
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2025-01-23 11:13:33
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