आज 26 जनवरी है यानी गणतंत्र दिवस। 1950 में देश में गणतंत्र लागू होने से पहले मध्य प्रदेश में शासन की क्या व्यवस्था थी, तब की रियासतों में कैसे रिश्ते थे, उनकी मुद्रा और उनके झंडे कैसे थे। किन बातों पर मतभेद था और किन पर समान विचार।
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संडे बिग स्टोरी में पढ़िए गणतंत्र से पहले कैसी थी रियासतों की शासन प्रणाली…
भोपाल रियासत में 60 बरस तक दूसरे नवाब की पत्नी ने पर्दे के पीछे से न सिर्फ हुकूमत किया बल्कि वो कूटनीति भी चली जिससे भोपाल अगले 150 साल तक अपनी रियासत बचाने में कामयाब रहा।
कहानी में आगे बढ़ने से पहले पहले सबसे बड़ी तीन रिसायतें एक नजर में…
अब कहानी उस दिलचस्प वाकये के साथ शुरू करते हैं जिसने 150 साल तक भोपाल रियासत का वजूद बनाए रखा…
बात नवंबर 1778 की है। ब्रिटिश राज ने भारत में अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दी थी। एक अंग्रेज जनरल थामस गोडार्ड कलकत्ता से बंबई जाने के लिए निकला था। गोडार्ड को तत्कालीन गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग ने समझाया था कि हमें विद्रोही मराठाओं को खत्म करना है। इस यात्रा में तुम भारत के दिल (आज के मध्य प्रदेश) से होकर गुजरोगे, इस दौरान जहां मराठे मिलें, उन्हें खत्म करते जाओ।
मराठा छापामार युद्ध करते थे, गोडार्ड भी तैयार था। उसका रास्ता मध्यभारत में इंदौर और ग्वालियर रियासतों से होकर गुजरता था, जहां मराठाओं का राज था। मराठा छापामार युद्ध करते थे। मराठाओं ने जनरल की सेना पर हमला किया। गोडार्ड युद्ध करते हुए आगे बढ़ रहा था। लगातार लड़ाइयों से जनरल थक चुका था, रसद भी खत्म हो रही थी।
रायसेन पहुंचने पर तस्वीर बदल गई। भोपाल की सीमा पर उसके स्वागत में शामियाने लगे हुए थे इत्र और फल–फूलों से उसका स्वागत हुआ। उसके काफिले को भोपाल रियासत से न केवल रसद मिली, बल्कि जितने दिन चाहे उतने दिन रुकने का न्यौता भी मिला। मराठाओं से लड़कर बेजार हुए गोडार्ड को भोपाल रियासत में सहारा मिला और अंग्रेजों के दिलो–दिमाग में यह बात हमेशा के लिए दर्ज हो गई कि बुरे समय में भोपाल रियासत ने उनका साथ दिया था।
इस वाकये का जिक्र दूसरे नवाब की पत्नी मामोलाबाई पर राजमहिषी मामोलाबाई किताब लिख चुके इतिहासकार घनश्याम सक्सेना करते हैं। वो कहते हैं कि ये दूरदर्शी फैसला नवाब की दूसरी पत्नी मामाेला का था। सच तो ये है कि पर्दे के पीछे से ऐसे कई फैसले करके वही शासन कर रही थीं।
ग्वालियर रियासत : अंग्रेजों से संघर्ष किया, फिर संधि की नीति
‘अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी…’ सुभद्रा कुमारी चौहान की झांसी की रानी कविता में ये लाइनें पढ़कर पीढ़ियां बड़ी हुई हैं, लेकिन ये पूरा सच नहीं है। संधि से पहले सिंधियाओं ने ग्वालियर रियासत के लिए अंग्रेजों से खूब संघर्ष किया।
18वीं सदी तक ग्वालियर के मराठाओं ने अंग्रेजों को रोककर रखा। अंग्रेज-मराठा युद्ध का अंत ‘द्वितीय मराठा युद्ध’ के बाद बेसिन की संधि के माध्यम से हुआ था, जो 31 दिसंबर 1802 को अंग्रेजों और मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच हुई थी। इस संधि के कारण मराठा संघ की शक्ति कमजोर हो गई और अंग्रेजों को भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिल गया।
इसके अलावा, तीसरे मराठा युद्ध (1817-1818) के बाद मांडेसर की संधि के साथ मराठा संघ का पूरी तरह पतन हुआ, जिससे अंग्रेजों का भारत पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया।
इंदौर रियासत : इसका भविष्य भी मांडेसर संधि से तय हो गया
मराठा संघ में ग्वालियर के सिंधिया ही नहीं इंदौर के होलकर भी थे। मराठा संघ के पतन और मांडेसर की संधि के साथ इंदौर रियासत का भविष्य भी तय हो गया। इसके बाद इंदौर रियासत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन एक ‘रियासत राज्य’ बन गई।
अंग्रेजों ने रियासत के आंतरिक मामलों में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन महत्वपूर्ण निर्णयों पर नियंत्रण रखा। ब्रिटिशों ने इंदौर में एक रेजिडेंट अधिकारी तैनात किया, जो ब्रिटिश हितों की निगरानी करता था। अंग्रेजों ने होलकर को साथ लेकर इंदौर को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया।
रेलवे, डाक सेवा और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण में अंग्रेजों का सहयोग था। रियासत को एक सीमित सैन्य बल रखने की अनुमति दी गई, लेकिन विदेशी मामलों और सुरक्षा पर अंग्रेजों का अधिकार था।
अब वो दांव-पेंच जिससे राजाओं पर कंट्रोल करते थे अंग्रेज
गणतंत्र से पहले देशी रियासतों और अंग्रेजों के संबंधों का जिक्र करते हुए भोपाल के पहले निगमायुक्त देवीसरन बताते हैं कि अंग्रेजों ने नवाबों राजाओं, जागीरदारों को अपनी रियासत के अंदर जो चाहे करने की छूट दे रखी थी। ब्रिटिश सरकार को केवल इस बात से मतलब था कि रियासत उनके प्रति वफादार है या नहीं।
इसके बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून वे कैसे चलाते हैं, इससे अंग्रेजों को ज्यादा मतलब नहीं था, जब तक उन तक शिकायत नहीं पहुंचे। शिकायत पहुंच जाए तो अंग्रेज अपने तरीके से एक्शन लेते थे, लेकिन राजाओं की सजा भी राजाओं जैसी होती थी। जैसे- किसी गंभीर गड़बड़ी पर आदेश निकाला जाता ब्रिटिश दरबार में उस जागीरदार या राजा की 21 तोपों की सलामी को घटाकर 15 तोपों की कर दी जाए।
सेना ब्रिटिश सरकार की, खर्च रियासत का
ब्रिटिश सरकार और भोपाल रियासत के संबंधों की चर्चा करते हुए इतिहासकार सक्सेना बताते हैं कि अंग्रेज हर स्टेट में ब्रिटिश आर्मी रखते थे। उनका कहना था कि यह आर्मी आपकी रक्षा के लिए है। ये खर्चा रियासतों को उठाना होता था, लेकिन रियासती खर्च पर रहने वाली ब्रिटिश सेना आदेश अंग्रेज सरकार का ही मानती थी, क्योंकि वह भी जानती थी कि रियासतें तो मोहरा हैं। असली सरकार ब्रिटिश ही चला रहे हैं।
मराठा राज बड़ा, लेकिन नवाब अंग्रेजों के फेवरेट
देवीसरन बताते हैं कि ब्रिटिश राज में मध्य भारत में ग्वालियर, इंदौर, भोपाल और रीवा बड़ी रियासतें थीं। इनमें से ग्वालियर में सिंधिया और इंदौर में होलकर अर्थात मराठाओं का शासन था।
आकार और धन–दौलत में मराठाओं का राज बड़ा था, लेकिन भोपाल रियासत को लगातार ब्रिटिश सरकार का संरक्षण मिला। ब्रिटिश सरकार शुरू से भोपाल नवाब को अपना मजबूत दोस्त मानती थी। बाद में भोपाल के नवाब दो बार चेंबर ऑफ प्रिंसेज के अध्यक्ष रहे। ऐसे में राजाओं के बीच उनकी पकड़ और रसूख ज्यादा थी। छोटी रियासतों की बात करते तो मध्य भारत में मकड़ाई रियासत थी, बुंदेलखंड में ही करीब तीन दर्जन रियासतें थीं।
होलकर का सिक्का सबसे मजबूत क्यों…
– इंदौर रियासत के मुकाबले भोपाल एक छोटा स्टेट था।
– इंदौर व्यापारिक रूप से ज्यादा मजबूत था।
– आज डॉलर की स्वीकार्यता जैसे पूरी दुनिया में है उस दौर में होलकर स्टेट की मुद्रा की स्वीकार्यता पूरे प्रदेश में थी क्योंकि ज्यादातर व्यापार का माध्यम यही था।
– बड़ा व्यापारिक क्षेत्र होने के कारण अंग्रेजों ने ही तय किया कि भोपाल के भी क्षेत्रीय लेनदेन होलकर की मुद्रा में ही हो।
बच्चों को नहीं पढ़ाने पर जागीर जब्त करने की चेतावनी
इतिहासकार और शिक्षक सैय्यद खालिद गनी बताते हैं कि भोपाल में नवाबों ने शिक्षा को बढ़ावा दिया। बेगमों ने न केवल मदरसे खोले, बल्कि लड़कियों के लिए स्कूल भी शुरू किया।
कैसे भारत संघ में शामिल हुईं ये तीनों रियासतें
– 28 मई 1948 को ग्वालियर रियासत भारत सरकार के साथ बातचीत के तहत मध्य भारत संघ का हिस्सा बनी।
– रियासत के अंतिम शासक महाराजा जीवाजीराव सिंधिया थे।
– उन्होंने ही विलय पत्र पर दस्तखत किए।
– 28 मई 1948 को इंदौर रियासत का भी विलय मध्य भारत संघ में हो गया।
– भारत सरकार के साथ समझौते के बाद रियासत के अंतिम शासक महाराज यशवंत राव होलकर ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।
– भोपाल रियासत ने तब विलय से इनकार कर दिया और 1 जून 1949 को भारत संघ में विलय को तैयार हुआ।
– रियासत के अंतिम नवाब हमीदुल्ला खान ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।
– ये वही भोपाल रियासत है जिसके नवाब का टाइटल अब फिल्म अभिनेता सैफ अली खान के पास है।
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