वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व – प्रदेश के 7वें टाइगर रिजर्व में 19 बाघों का बसेरा, टूरिस्ट आना चाहते हैं पर टूरिज्म जैसा माहौल नहीं
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जून 2023 में अस्तित्व में आए बुंदेलखंड के वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को 21 महीने बीत चुके हैं, लेकिन यह अभी टाइगर रिजर्व के स्वरूप में नहीं ढल पाया है। कागज पर भले ही यह रिजर्व बन गया, लेकिन है सेंचुरी की तरह। अभी तक यहां फील्ड डायरेक्टर और वेटनरी डॉक्टर की नियुक्ति भी नहीं हुई। रेस्क्यू टीम और अधीनस्थ अमला भी अभयारण्य जैसा ही है।
टाइगर रिजर्व के 93 गांवों में से 44 का ही विस्थापन हो पाया है। इसमें शामिल तीन जिलों के अलग-अलग एरिया का कागजों में हस्तांतरण भी अभी बाकी है। यहां वर्तमान में 19 बाघ हैं। बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। टूरिस्ट आना चाहते हैं, लेकिन उन्हें टूरिज्म जैसा माहौल नहीं मिल पा रहा है। नौरादेही डीएफओ के हाथ में ही पूरे टाइगर रिजर्व की कमान है। अधिकारी दावा कर रहे हैं कि जल्द सबकुछ मिलेगा। डिमांड भेजी गई है।
क्षेत्रफल में प्रदेश के सबसे बड़े अभयारण्य नौरादेही और सबसे छोटे वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य को मिलाकर प्रदेश का सातवां और बुंदेलखंड का दूसरा टाइगर रिजर्व बनाया गया था। इसे जून 2023 में नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी से मंजूरी मिली थी। चुनावी लाभके नजरिए से प्रदेश सरकार ने विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने के पहले इसकी अधिसूचना जारी करते हुए नए टाइगर रिजर्व की सीमाएं तय की थीं।
इसका नाम वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व रखा गया। तीन जिले सागर, दमोह, नरसिंहपुर का कोर एरिया इसमें शामिल किया गया है। नौरादेही अभयारण्य के लिए 2012-13 से विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई थी। नौरादेही अभयारण्य की सीमा में आने वाले बरपानी, तरा, भड़रा, करनपुर, मढ़िया, बधा, बिजनी, कुसमी (लगरा), तिंदनी, खापा, महका, सिंगपुरी (जामुनझिरी), जामुनहटरी, महगवां, खापा, आमापानी, केसली, आंखीखेड़ा, केरपानी, सरी, पुटदेही, खमरापठार, जोगीपुरा, झमरा, उकरपार, दुधिया तथा हांडीकाट शामिल हैं। मुहली गांव का विस्थापन चल रहा है।
इन पांच कारणों से समझिए क्यों टाइगर रिजर्व अपने स्वरूप में नहीं आ पाया
1- फील्ड डायरेक्टर, जो कि बफर व कोर एरिया के हिसाब से अलग-अलग होते हैं। इनकी पोस्टिंग नहीं हुई। 2-बाघ, तेंदुए और अन्य वन्य जीवों के रेस्क्यु के लिए टीम हैं पर ट्रैक्युलाइज स्पेशलिस्ट व वेटनरी डॉक्टर नहीं। 3-टाइगर रिजर्व में शामिल तीन जिलों की जमीन का हस्तांतरण अटका है। सिर्फ बफर जोन की जमीन ट्रांसफर हुई है। 4- पर्यटकों के लिए आसपास स्टे होम्स नहीं। टाइगर के मूवमेंट पर सफारी वाले रूट को ही बंद कर दिया जाता है। 5- रिजर्व से गांवों का विस्थापन अटका है। इनमें दमोह जिले के गांव ज्यादा हैं। सागर के 7, नरसिंहपुर के 3 गांव बचे हैं।
बाघों में संघर्ष, पहले बाघ की हो चुकी है मौत
नौरादेही में वर्ष 2018 में बाघ शिफ्टिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था। पहले बाधिन एन-1 राधा को और कुछ दिन बाद बाघ एन-2 किशन को लाया गया था। सिर्फ 5 साल में 15 बाघों का कुनबा हो गया। कुछ बाहर से बाघ आकर यहां रम गए। टेरेटरी को लेकर बाधों के बीच संघर्ष एक बड़ा खतरा है। एक साल पहले नौरादेही के पहले बाध किशन एन-2 की एक बाहरी बाघ से संघर्ष में मौत हो गई थी। यहां तेंदुआ, चिंकारा, हिरण, नीलगाय, सियार, भेड़िया, लकड़बग्घा, भालू व अन्य वन्य जीव भी हैं।
सीधी बात – एए अंसारी, डीएफओ टाइगर रिजर्व
वेटनरी डॉक्टर की डिमांड भेजी है, गांवों का विस्थापन तेजी से जारी
Q. टाइगर रिजर्व कागजों में बनकर रह गया है? ऐसा नहीं है। हर तरफ अमल हाे रहा है। ऐसे प्रोजेक्ट में समय लगता है। Q. फील्ड डायरेक्टर व रेस्क्यू टीम में वेटनरी डॉक्टर ही नहीं? वेटनरी डॉक्टर की डिमांड भेजी है। शासन स्तर से फील्ड डायरेक्टर की पोस्टिंग हाेगी। Q. टाइगर रिजर्व में शामिल जमीन का ट्रांसफर भी अटका है? बफर जोन की जमीन का हस्तांतरण हाे चुका है। शेष प्रक्रिया में है। Q. टाइगर रिजर्व में टूरिज्म जैसा माहौल क्यों नहीं बन पा रहा? छिरारी में टूरिज्म के लिए 4 हैक्टेयर जमीन मिली है। सफारी के लिए योजना बनाई है। Q. कितने गांवों का विस्थापन शेष है? गांवों के विस्थापन के लिए लगातार बजट आ रहा है। 93 में से 44 गांव विस्थापित कर दिए हैं। शेष भी करेंगे।
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