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कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी का शपथग्रहण कल: 24वें PM बनेंगे, मंत्री भी शपथ लेंगे; 9 फरवरी को पार्टी नेता का चुनाव जीता

ओटावा1 घंटे पहले

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कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी का शपथग्रहण कल यानी शुक्रवार 14 मार्च को होगा। वे कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। यह शपथग्रहण भारतीय समयानुसार रात 8:30 बजे राजधानी ओटावा के रिड्यू हॉल के बॉलरूम में होगा।

कार्नी के अलावा उनके मंत्रिमंडल सदस्य भी शुक्रवार को शपथ लेंगे। उन्होंने 9 फरवरी को लिबरल पार्टी के नेता का चुनाव जीता था। कार्नी को 85.9% वोट मिले। मार्क कार्नी कनाडा के वर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह सत्ता संभालेंगे।

पार्टी नेता का चुनाव जीतने के बाद कार्नी ने प्रधानमंत्री ट्रूडो से मुलाकात की थी। दोनों के बीच सत्ता सौंपने को लेकर चर्चा हुई थी। ट्रूडो ने जनवरी में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी। शुक्रवार को ट्रूडो गवर्नर जनरल के पास जाकर आधिकारिक रूप से अपना इस्तीफा देंगे।

जस्टिन ट्रूडो ने 10 फरवरी को को लिबरल पार्टी कन्वेंशन में कनाडा के प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी फेयरवेल स्पीच दी। इसके बाद वो कुर्सी उठाकर संसद से बाहर चल दिए।

जस्टिन ट्रूडो ने 10 फरवरी को को लिबरल पार्टी कन्वेंशन में कनाडा के प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी फेयरवेल स्पीच दी। इसके बाद वो कुर्सी उठाकर संसद से बाहर चल दिए।

बैंकर और इकोनॉमिस्ट हैं मार्क कार्नी

मार्क कार्नी इकोनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। कार्नी को 2008 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर चुना गया था। कनाडा को मंदी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उसकी वजह से 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया।

बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल के इतिहास में वे पहले ऐसे गैर ब्रिटिश नागरिक थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली। वे 2020 तक इससे जुड़े रहे। ब्रेग्जिट के दौरान लिए फैसलों ने उन्हें ब्रिटेन में मशहूर बना दिया।

ट्रम्प के विरोधी हैं कार्नी, लेकिन बयान देने से बचते हैं

कई वोटर्स को लगता है कि कार्नी की आर्थिक योग्यता और उनका संतुलित स्वभाव ट्रम्प को साधने में मदद करेगा। दरअसल, कार्नी लिबरल पार्टी में ट्रम्प के विरोधी हैं। उन्होंने देश की इस हालत का जिम्मेदार ट्रम्प को बताया है। उन्होंने पिछले मंगलवार को एक बहस के दौरान कहा कि ट्रम्प की धमकियों से पहले ही देश की हालत खराब है। बहुत से कनाडाई बदतर जीवन जी रहे हैं। अप्रवासियों की संख्या बढ़ने से देश की हालत और खराब हो गई है।

कार्नी अपने विरोधियों की तुलना में अपने कैंपेनिंग को लेकर ज्यादा सतर्क रहे हैं। पीएम पद का उम्मीदवार बनने के बाद से अभी तक उन्होंने एक भी इंटरव्यू नहीं दिया है। वे ट्रम्प विरोधी हैं, लेकिन कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने और देश पर टैरिफ लगाने वाले ट्रम्प के बयान को लेकर कुछ भी कहने से बचते रहे हैं।

हालांकि, हाल ही में ट्रम्प की तरफ से कनाडा पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान करने के बाद उन्होंने एक बयान दिया था-

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कनाडा किसी दबंग के आगे नहीं झुकेगा। हम चुप नहीं बैठेंगे हमें एक मजबूत रणनीति बनानी होगी, जिससे निवेश बढ़े और हमारे कनाडाई कामगारों को इस मुश्किल समय में सहायता मिले।

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लोकप्रिय हैं, लेकिन ज्यादा दिन PM रहने की संभावना कम

पिछले साल जुलाई में एक पोलिंग फर्म ने जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने वाले संभावित उम्मीदवारों को लेकर सर्वे किया था। तब 2000 में से सिर्फ 140 लोग यानी 7% लोग ही मार्क कार्नी को पहचान पाए थे। जनवरी में जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद उन्होंने खुद को लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया।

इसके बाद उन्होंने लिबरल पार्टी के कई कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों का समर्थन हासिल किया, जिससे उनकी दावेदारी मजबूत हुई है। हाल ही में मेनस्ट्रीट सर्वे के मुताबिक कार्नी को 43%, वहीं पूर्व वित्तमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड को 31% वोटर्स का समर्थन मिला है।

हालांकि यह कहा नहीं जा सकता है कि कार्नी कितने समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे। दरअसल, लिबरल पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के बाद कार्नी को अक्टूबर से पहले देश में चुनाव कराने होंगे। फिलहाल वे संसद के भी मेंबर नहीं हैं, ऐसे में वे जल्द ही चुनाव करा सकते हैं।

भारत-कनाडा के रिश्तों को बेहतर बनाना चाहते हैं कार्नी

कार्नी भारत और कनाडा के रिश्तों में आए तनाव को खत्म करना चाहते हैं। वे भारत से अच्छे रिश्तों को हिमायती रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कहा था कि अगर वो कनाडा के प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से बहाल करेंगे।

उन्होंने कहा-

कनाडा समान विचारधारा वाले देशों के साथ अपने व्यापारिक संबंधों में विविधता लाना चाहता है और भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाना चाहता है।

हालांकि, दोनों देशों के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह- खालिस्तानी आतंकियों के मुद्दे पर मार्क कार्नी ने अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।

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